सूर घनाक्षरी ◆
शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत
चरणान्त लघु गुरु।
मेरी हे शारदे माता,
मइया तुझको ध्याता।
लाल तेरा है बुलाता।।
माँ मेरी आ चली।
छल बल बढ़ा अति,
भ्रष्ट हो गयी मति।
सरस काम की रति,
गयी फिर छली।।
अश्रु नैनों में भरे है,
पीत पातों से झरे हैं।
तेरे चरणों गिरे हैं,
दु:खी मन कली।।
दुःख दूर करो तुम,
मन मोद भरो तुम।
हाथ शीश धरो तुम,
हरो खलबली।।
दिलीप कुमार पाठक "सरस
सूर घनाक्षरी ◆
शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत
चरणान्त लघु गुरु।

सर्दियों में हिम गले।
शीतल लहर चले।
ठिठुरन अंग भरी।
चले आओ पिया।
तुम बिन तरसत
नैन मेरे बरसत
आपके ही दर्श हेतु
जले नैन दिया।।
निंदिया न आती अब
रात भी सताती अब
सर्दी न सुहाती अब
तड़पत जिया।।
घना है कुहासा गीत।
एक तुम आशा प्रीत
प्यार परिभाषा मीत
बसे तुम हिया।।
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆ सूर घनाक्षरी ◆
शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत
चरणान्त लघु गुरु।

बीती बात भूल अब
नया झूला झूल अब
न चुभाना शूल अब
आये हर्ष नया ।।
स्नान कर मल-मल
रहे नहीं मन मल
पहनके मलमल
छू उत्कर्ष नया।।
अँखियन सुहाये जो
जीवन को हर्षाये जो
औ मन को लुभाये जो
हो आदर्श नया।।
मन-पंछी उड़ जाना।
नये भाव भर लाना।
हितकारी सुखकारी
हो ये वर्ष नया।
दिलीप कुमार पाठक "सरस
◆ डमरू घनाक्षरी ◆
शिल्प~8,8,8,8 लघु वर्ण प्रति चरण
【बिना मात्रा के प्रति चरण 32 वर्ण,】
4चरण समतुकांत।

मन हरषत अब,
लखकर दरसन।
पहल पवन कर,
सर-सर चलकर।।
दरपन लखकर,
नयनन भरकर।
तन-मन फरकत,
महकत सजकर।।
झमझम बरसत,
सरस सघन घन।
सजन शयन कर,
उर घर बसकर ।।
बस कर,बस कर,
कह मत,मत कर।
कर-कर,कर-कर,
कर मन भरकर।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🏻🏻🏻🏻🏻🏻
◆ वीर/आल्हा छंद [सम मात्रिक]◆
विधान –[ 31 मात्रा, 16,15 पर यति,
चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल,
कुल चार चरण,
क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत]

धूप कहूँ नहिं देय दिखाई,
पाले की चहुँतरफा मार।
थर-थर,थर-थर तन है काँपै,
ठंडी-ठंडी चलै बयार।।
साँझ भई सब तापन बैठे,
बीड़ी हुक्का लियो उठाय।
पहले मसली है तम्बाकू,
फिर फटकारी दई लगाय।।
कुछ तौ सेंकत हाथ-पाँव हैं,
कुछ की होतीं आँखैं चार।
दद्दा बैठे गप्पैं हाँकैं,
होय ठहाकन की बौछार ।।
बहुत देर से भरकन कौ जौ,
ठंडो बिस्तर रहो बुलाय।
शीत लहर को झोंका आओ,
आगी सारी दई बुझाय।।
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*माहिया -छंद*

माहिया ` पंजाब का प्रसिद्ध लोग गीत है . यूँ तो इसमें श्रृंगार रस के दोनों
पक्ष संयोग और वियोग का समावेश होता लेकिन अब अन्य रस भी शामिल किये जाने लगे हैं . इस छंद में नायक और नायिका ( प्रेमी और प्रेमिका ) की अमूमन नोंक - झोंक होती है . यह तीन पंक्तियों का छंद है . इसे ` टप्पा` भी कहते हैं . पहली और तीसरी पंक्तियों में 12 मात्राएँ यानि 2211222और दूसरी पंक्ति में
10 मात्राएँ यानि 211222 होती हैं . तीनों पंक्तियों में सारे गुरु ( 2 ) भी आ सकते हैं .
🏻🏻🏻🏻🏻🏻🏻
काहे गये परदेश।
लौटे नाहीं तुम।।
भेजौ सरस संदेश।।।
बहुत काम है सजनी।
दूर हमारो घर।।
जागैं सारी रजनी।।।
ऐसे कब तक सैहैं।
जुदाई यार की।।
तुम बिन नहिं रह पैहैं।।।
दूर मिलन है माना।
ओ सजनी मेरी।।
आकै नहिं अब जाना।।।
सुन लेना बनबारी।
भेजैं अधिकारी ।।
दूर करौ लाचारी ।।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆तिलका छंद◆
शिल्प:-
[सगण सगण(112 112),
दो-दो चरण तुकांत,
6वर्ण प्रति चरण ]
🏻🏻🏻🏻🏻
रस छंदन में।
मकरंदन में।।
लय ताल मिले।
मन-रूप खिले।।
कर काम सदा।
मत बोझ लदा।।
दुख दूर करें।
भव-रोग हरें।।
मन मोद भरो।
सब शोक हरो।।
मनमीत मिला।
दिल फूल खिला।।
घर आज सजा।
अब दूर न जा।।
हम साथ चले।
मन दीप जले।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🏻
जय माँ शारदे
वंदना के भाव-पुष्प

माता मेरी शारदे,
ममता का है कोष।
दूर करो सुत के सभी,
जो भी देखो दोष।।

बालक हूँ मैं आपका,
कर ममता-पय पान।
गुण गाऊँ मैं आपके,
रखना इतना ध्यान ।।

कोमल भावों की मिले,
जीवन में रसधार।
हे माता सबके लिए ,
दे दो सुख का सार।।

मैया मेरी मैं अभी,
बालक हूँ नादान ।
अंधकारमय जग दिखे ,
हरो तिमिर अज्ञान ।।

डर लगता है माँ मुझे,
आप न जाना दूर।
आपके चरणों में दिखे,
ज्योतिपुंज का नूर।।

सदा वंदना मैं करूँ,
करूँ बंद न मात।
सबके सिर पर नेह का,
रखें सदा ही हाथ।।

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🏻माँ शारदे की वंदना🏻

घनाक्षरी छंद

नेह की कसौटी खरी,
हरी-भरी उर धरी।
जौहरी समान मूर्त,
भाव भर देना माँ।।
बालक अबोध तेरे,
जाने नहीं रञ्च-मात्र।
लेखनी चले निर्भीक,
धार धर देना माँ।।
आतंक पे प्रहार हो,
सार का प्रसार हो।
प्रीति-रीति नीति का तू,
ऐसा वर देना माँ ।।
अधजल गगरी है,
छलक न जाये कहीं।
ज्ञान -रस परिपूर्ण,
इसे कर देना माँ।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
सूर घनाक्षरी ◆
शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत
चरणान्त लघु गुरु।
🏻🏻🏻🏻🏻🏻🏻
मेरी हे शारदे माता,
मइया तुझको ध्याता।
लाल तेरा है बुलाता।।
माँ मेरी आ चली।
छल बल बढ़ा अति,
भ्रष्ट हो गयी मति।
सरस काम की रति,
गयी फिर छली।।
अश्रु नैनों में भरे है,
पीत पातों से झरे हैं।
तेरे चरणों गिरे हैं,
दु:खी मन कली।।
दुःख दूर करो तुम,
मन मोद भरो तुम।
हाथ शीश धरो तुम,
हरो खलबली।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस
सूर घनाक्षरी ◆
शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत
चरणान्त लघु गुरु।

सर्दियों में हिम गले।
शीतल लहर चले।
ठिठुरन अंग भरी।
चले आओ पिया।
तुम बिन तरसत
नैन मेरे बरसत
आपके ही दर्श हेतु
जले नैन दिया।।
निंदिया न आती अब
रात भी सताती अब
सर्दी न सुहाती अब
तड़पत जिया।।
घना है कुहासा गीत।
एक तुम आशा प्रीत
प्यार परिभाषा मीत
बसे तुम हिया।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
[12/8/2016, 2:42 PM] SS SARAS DILIP KUMAR PATHAK:
◆ सूर घनाक्षरी ◆
शिल्प~8,8,8,6,चार चरण समतुकांत
चरणान्त लघु गुरु।
🏻🏻🏻🏻🏻🏻🏻
बीती बात भूल अब
नया झूला झूल अब
न चुभाना शूल अब
आये हर्ष नया ।।
स्नान कर मल-मल
रहे नहीं मन मल
पहनके मलमल
छू उत्कर्ष नया।।
अँखियन सुहाये जो
जीवन को हर्षाये जो
औ मन को लुभाये जो
हो आदर्श नया।।
मन-पंछी उड़ जाना।
नये भाव भर लाना।
हितकारी सुखकारी
हो ये वर्ष नया।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस
◆ डमरू घनाक्षरी ◆
शिल्प~8,8,8,8 लघु वर्ण प्रति चरण
【बिना मात्रा के प्रति चरण 32 वर्ण,】
4चरण समतुकांत।

मन हरषत अब,
लखकर दरसन।
पहल पवन कर,
सर-सर चलकर।।
दरपन लखकर,
नयनन भरकर।
तन-मन फरकत,
महकत सजकर।।
झमझम बरसत,
सरस सघन घन।
सजन शयन कर,
उर घर बसकर ।।
बस कर,बस कर,
कह मत,मत कर।
कर-कर,कर-कर,
कर मन भरकर।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🏻🏻🏻🏻🏻🏻
◆ वीर/आल्हा छंद [सम मात्रिक]◆
विधान –[ 31 मात्रा, 16,15 पर यति,
चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल,
कुल चार चरण,
क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत]

धूप कहूँ नहिं देय दिखाई,
पाले की चहुँतरफा मार।
थर-थर,थर-थर तन है काँपै,
ठंडी-ठंडी चलै बयार।।
साँझ भई सब तापन बैठे,
बीड़ी हुक्का लियो उठाय।
पहले मसली है तम्बाकू,
फिर फटकारी दई लगाय।।
कुछ तौ सेंकत हाथ-पाँव हैं,
कुछ की होतीं आँखैं चार।
दद्दा बैठे गप्पैं हाँकैं,
होय ठहाकन की बौछार ।।
बहुत देर से भरकन कौ जौ,
ठंडो बिस्तर रहो बुलाय।
शीत लहर को झोंका आओ,
आगी सारी दई बुझाय।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*माहिया -छंद*

माहिया ` पंजाब का प्रसिद्ध लोग गीत है . यूँ तो इसमें श्रृंगार रस के दोनों
पक्ष संयोग और वियोग का समावेश होता लेकिन अब अन्य रस भी शामिल किये जाने लगे हैं . इस छंद में नायक और नायिका ( प्रेमी और प्रेमिका ) की अमूमन नोंक - झोंक होती है . यह तीन पंक्तियों का छंद है . इसे ` टप्पा` भी कहते हैं . पहली और तीसरी पंक्तियों में 12 मात्राएँ यानि 2211222और दूसरी पंक्ति में
10 मात्राएँ यानि 211222 होती हैं . तीनों पंक्तियों में सारे गुरु ( 2 ) भी आ सकते हैं .
🏻🏻🏻🏻🏻🏻🏻
काहे गये परदेश।
लौटे नाहीं तुम।।
भेजौ सरस संदेश।।।
बहुत काम है सजनी।
दूर हमारो घर।।
जागैं सारी रजनी।।।
ऐसे कब तक सैहैं।
जुदाई यार की।।
तुम बिन नहिं रह पैहैं।।।
दूर मिलन है माना।
ओ सजनी मेरी।।
आकै नहिं अब जाना।।।
सुन लेना बनबारी।
भेजैं अधिकारी ।।
दूर करौ लाचारी ।।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆तिलका छंद◆
शिल्प:-
[सगण सगण(112 112),
दो-दो चरण तुकांत,
6वर्ण प्रति चरण ]
🏻🏻🏻🏻🏻
रस छंदन में।
मकरंदन में।।
लय ताल मिले।
मन-रूप खिले।।
कर काम सदा।
मत बोझ लदा।।
दुख दूर करें।
भव-रोग हरें।।
मन मोद भरो।
सब शोक हरो।।
मनमीत मिला।
दिल फूल खिला।।
घर आज सजा।
अब दूर न जा।।
हम साथ चले।
मन दीप जले।।
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🏻
जय माँ शारदे
वंदना के भाव-पुष्प

माता मेरी शारदे,
ममता का है कोष।
दूर करो सुत के सभी,
जो भी देखो दोष।।

बालक हूँ मैं आपका,
कर ममता-पय पान।
गुण गाऊँ मैं आपके,
रखना इतना ध्यान ।।

कोमल भावों की मिले,
जीवन में रसधार।
हे माता सबके लिए ,
दे दो सुख का सार।।

मैया मेरी मैं अभी,
बालक हूँ नादान ।
अंधकारमय जग दिखे ,
हरो तिमिर अज्ञान ।।

डर लगता है माँ मुझे,
आप न जाना दूर।
आपके चरणों में दिखे,
ज्योतिपुंज का नूर।।

सदा वंदना मैं करूँ,
करूँ बंद न मात।
सबके सिर पर नेह का,
रखें सदा ही हाथ।।

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🏻माँ शारदे की वंदना🏻

घनाक्षरी छंद

नेह की कसौटी खरी,
हरी-भरी उर धरी।
जौहरी समान मूर्त,
भाव भर देना माँ।।
बालक अबोध तेरे,
जाने नहीं रञ्च-मात्र।
लेखनी चले निर्भीक,
धार धर देना माँ।।
आतंक पे प्रहार हो,
सार का प्रसार हो।
प्रीति-रीति नीति का तू,
ऐसा वर देना माँ ।।
अधजल गगरी है,
छलक न जाये कहीं।
ज्ञान -रस परिपूर्ण,
इसे कर देना माँ।।
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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