बिछड़ कर जो गये पंछी, यकायक लौट कर आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूट कर आए।
कोई पैदल ही चलकर के,आए गांव को अपने।
शहर से वो चले आए,जो देखे छोड़कर सपने।
भयावह रोग से डर के,वो घर गांव को आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूटकर आए।-01
*
विरह में थे शज़र, डालों को पंछी छोड़कर भागे।
मगर मुश्किल हुई पंछी,जो आए भाग हैं जागे।
शहर को जो गये पंछी,मज़ा हैं लूटकर आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूटकर आए।-02
*
हमारे गांव को पिछड़ा समझकर,
थे शहर भागे।
न कहकर वे कभी थकते, हमारे भाग हैं जागे।
बदलता देख मंज़र गोद मां की,
टूटकर आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूटकर आए।-03
*
बहुत से पांव चलकर,आ सके न, याद है आयी।
हवाले आग के उस शहर में फरियाद है आयी।
न आखिर पल में घरवाले,शक्ल भी देखने पाए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से
छूटकर आए।-04
*
परिन्दे ठूंठ पर आए,बसंत फिर लौट आया है।
हरे कानन और गांवन ने खुशी के गीत गाया है।
वतन आए खुशी से वो, नहीं वो
रूठकर आए।
बहुत सहमें हुए चहरे, गिरफ्त से छूट कर आए।-05
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प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनांक.13/04/2020
मो.09589349070
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