वज़्न-212-212-212-212,2
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तू खुदा तो नहीं पर इनायत किया कर।
बावफा रह,न कोई बग़ावत किया कर।-01
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यार है यार मानिन्द रुख चाहिए,
दुश्मनो की न कोई वकालत किया कर।-02
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ख़ास दिखता रहा ख़ास वो है नहीं,
अर्ज़ उससे करें, ना अदावत किया कर।-03
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तू फ़रेबी हुआ और मक्कार भी
भूल कर यार से ना अदालत किया कर।-04
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आसमाँ की तरह हौसला हो भले,
रह अदब से,नहीं तू जलालत किया कर।-05
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यार ने रख यकीं मिल्कियत सौंप दी,
ना गला.घोंट ना ही खयानत किया कर।-06
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स्वरचित,कापीराइट,ग़ज़लकार,
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.19/01/2020
मो.09589349070
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