प्रीति न कीजिए,है अदावत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।
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मुख में अमृत है,दिल में ज़हर जो भरा।
खोट वाले हैं मिलते,न मिलता खरा।
अब कहीं नहिं मिलेगी शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-01
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आज मिलते बहुत जो दग़ाबाज़ हैं।
काक हैं गिद्ध हैं वो कहें बाज़ हैं।
आचरण से कहें है शिकायत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-02
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जो मिले लूट लें,ऐसे बटमार हैं।
कालनेमि के वो तो कि अवतार हैं।
नहिं करे छलियों से हम शराफत बहुत।
प्रीति है अब सियासी बग़ावत बहुत।-03
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प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.24/01/2020
मो.09589349070
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