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गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

भारत जिसका शौर्य सूर्य है दीप्तिमान सदियों से - आदित्य तोमर

भारत जिसका शौर्य सूर्य है दीप्तिमान सदियों से।
झलका जिसका गर्व पहाड़ों से, ममता नदियों से।।

कण-कण में छविचित्र राम के, पग पग तीर्थ अटे हैं।
जोकि समय के झंझावातों से भी नहीं मिटे हैं।।

इसने स्वर्णमयी वैभव भी, काला युग भी देखा।
उस वर्णन से भरा पड़ा है इतिहासों का लेखा।।

उन लेखों में परम पूज्य है नाम एक बलिदानी।
जोकि कभी स्वातन्त्र्य समर का रहा प्रथम सेनानी।

बेड़ी में जकड़ी जब भारत माँ की नर्म कलाई।
क्रूर अनय अत्याचारों की खिली वेल, लहराई।।

बर्बर चोर लुटेरे ही जब सत्तासीन हुए थे।
सच के नीति-नियन्ता सब उनके आधीन हुए थे।।

झूठे को झूठा, पापी को पापी कौन कहे फिर।
सच्चाई के साथ अडिग होकर भी कौन रहे फिर।।

चारो ओर भयंकर अत्याचार दिखाई देते।
शहर-गाँव में भीषण नरसंहार दिखाई देते।।

भारतीय योद्धाओं ने पहले भी युद्ध लड़े थे।
इतने अत्याचार न पहले होते दीख पड़े थे।।

तिल-तिल कर मरवाये जाते थे रणवीर अभागे।
आम हो गए थे जौहर के दृश्य दृष्टि के आगे।।

शिशुओं को भालों के नेज़ों पर उछालते थे वे।
खड़ी फसल के साथ गाँव को जला डालते थे वे।।

उस कुसमय में बढ़ प्रताप ने पूजा थाल उठाया।
तब माँ ने भी झुका हुआ सदियों का भाल उठाया।।

दे अगणित आशीष शीश को स्नेहमयी ने चूमा।
रोम-रोम राणा प्रताप का आनन्दित हो झूमा।।

पगरज से कर तिलक वीर ने तब तलवार उठा ली।
कहा समझ ले मात, रात अब बीत चुकी है काली।।

माँ-बहनों की लाज न जीते जी मैं लुटने दूँगा।
और चोटियाँ भी न हिन्दुओं की मैं कटने दूँगा।।

तेरे सुत का देखेंगे अब कायर मुग़ल जड़ाका।
मैं बतलाऊँगा उनको क्या होता है रण साका।।

यही वचन राणा प्रताप आजीवन रहे निभाते।
भर देता है हृदय नाम जिव्हा पर आते-आते।।

सहे घाव पर घाव, घाव को भले न मिली दवाई।
कभी न झुक पाई लेकिन रण में तलवार उठाई।।

कभी न दरवाज़ा देखा अकबरशाही महलों का।
कभी न लगने दिया दाग़ भी घोड़ों पर मुग़लों का।।

ढहा दिया गढ़ आतताईयों के बलशाली डर का।
सपना पूरा कभी न होने दिया मुग़ल अकबर का।।
-
आदित्य तोमर
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)

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