लज्जा को दरड़ कर, हया को घिसड़ कर,
वासना की गाढ़ी-गाढ़ी, दाल घांटने लगे।
मिट्टी में मिलाके मान, गटर में आन-बान,
बड़े-बड़े कुंठितों के, कान काटने लगे।
खुद की किवाड़ियों में, कामना की कील ठोंक,
नित ही हवस वाली, भूख पाटने लगे।
खुद के गिरेबाँ में ही, अनगिन दाग लगे,
भँड़वे चरित्र का, प्रमाण बाँटने लगे।
बेटियाँ-वधू न दीखीं, बेटियाँ-वधू सरीखी।
उनको भी कामुकी, नज़र ताकने लगे।
बेच खाई हया सारी, वासना की मारामारी,
स्त्री के शरीर का, स्तर आँकने लगे।
कामना की प्यास में ये, तन की तलाश में ये,
बेटे-बेटी-बहुओं के, घर झाँकने लगे।
खुद के गिरेबाँ में ही, अनगिन दाग लगे।
भँड़वे चरित्र का, प्रमाण बाँटने लगे।
✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍
~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
संपर्क : 7992272251
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