***********ग़ज़ल**********
बह्र/अर्कान-1222*4,मफाईलुन*4
***
सियासत को क़रीने से अगर तुम खुद सजाओगे।
यकीं मानो फतह का दौर तब ही यार लाओगे।
*
बुलंदी में नहीं झंडा कभी यूं ही ये लहराये
अगर चाणक्य नीती हो तभी कुछ यार पाओगे।
*
बिसातें भी बिछाना है ज़ुदा अंदाज़ शातिर हो
यकीं मानो फतह होगी तुम्हीं तुम लहलहाओगे।
*
शराफ़त ओढ़ कर चलना ज़ुबां यूं हो गली मिश्री
बनाया है जिसे आका सलामी ठोंक आओगे।
*
बनो आबाम के लीडर निहायत सादगी रखना
बिठायेगी तुम्हें सर पे यकीनन जीत जाओगे।
*
दवा दारू कभी कंबल भरी रातों मयस्सर कर
खिलेगा ग़ुल तुम्हारे सर पे *ध्रुव* सहरा सजाओगे।
***
**************************
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र
दिनांक.30/03/2020
मो.09589349070
**************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400