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मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

गीत :-खुशबुओं की तरह - प्रदीप ध्रुव


खुशबुओं की तरह हम बिखरते रहे,
दिल में सबके मगर हम उतरते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।
*
कभी गुल सरीखे सजाये गये,
सजावट  से फिर हम हटाये गये।
कभी दौर था जब रहे अर्श पे हैं,
सरताज़ भी हम बनाये गये।
वही दौर था शेर मानिन्द हम या,
सदर की तरह हम ग़ुज़रते रहे।
वक़्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-01
*
वक्त बदलाव का नाम है ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी ने हमें आजमाया बहुत।
जब रहे अर्श पे तो हँसे भी बहुत,
ज़िन्दगी ने मगर फिर रुलाया बहुत।
हार माने नहीं तय हुई मंज़िलें,
अश्क़ संग और भी हम सँवरते रहे।
वक़्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज्यादा और हम निखरते रहे।-02
*
बात ईमान की और अदब संग चले,संग मेरा मुश्किलों नें निभाया बहुत।
कुछ मिले कालनेमि मगर राह पे,
बच निकलते रहे,पर लुभाया बहुत।
जब चले तो चले फिर रुके ही नहीं,देखने को असलियत ठहरते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-03
*
टिमटिमाता दिया जल रहा अनवरत,कोशिसें आँधियों की बुझा न सके।
गर्त में डालने की रहीं कोशिसें,
उनके फन कुचला सर वो उठा न सके।
हम कभी टूटते नाम उसका नहीं,
मेरे अरमां और भी मचलते रहे।
वक्त के जो थपेड़े पड़े हम पे हैं,
उससे ज़्यादा और हम निखरते रहे।-04
***
★★★★★★★★★★★★
प्रदीप ध्रुवभोपाली,भोपाल,म.प्र.
दिनाँक.17/02/2020
मो.09589349070
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