फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
२१२२ ११२२ २२
क्यूँ छिपाते हो किधर जाना हैं....
बोलकर बता दो कि घर जाना हैं....
भटकना अब नहीं हैं ज़माने में....
हाथ में कुछ तो पसर जाना हैं....
बहती रहती हैं जो नदी हर दफाँ...
एक दिन सागर में बसर जाना हैं.....
प्यार में डूबें हैं देखो सभी...
प्यार की हदों से गुज़र जाना हैं.....
साथ खाई थी तुमने संग मिरे...
झूठी कसमों से मुकर जाना हैं....
साथ रहना संग मिरे ए सनम....
आपके प्यार में तर जाना हैं....
टूटकर बिखरा हूँ इस कदर मैं...
प्यार में उसी के सँवर जाना हैं.....
अपना अपना ही होता हैं पारस...
आज अपनों के ही घर जाना हैं......
पारस गुप्ता
शायर दिलसे
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