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बुधवार, 8 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- मोहताज़ दाने दाने को होता रहा किसान - डा नसीमा निशा

मोहताज़ दाने दाने को होता रहा किसान ,
बंज़र ज़मीं में ख्वाब को बोता रहा किसान l

सरकार हो किसी की भी धोखा ही मिला है ,
लाचारियों को अपनी बस ढ़ोता रहा किसान l

सूखा पड़ा कभी तो ,कभी बाढ़ आगयी  ,
बर्बाद इसतरह से भी होता रहा किसान l

बेटी हुई जवान तो तो सर उसका झुक गया ,
बेबस हुआ गरीबी में रोता रहा किसान l

कर्ज़ा हुआ तो मौत की आगोश में गया ,
अपनी ही लाश कांधे पे ढ़ोता रहा किसान l

अच्छी फसल हुई तो,मिले दाम कम उसे,
नीलाम इस तरह से भी होता रहा किसान l

कहते हैं अन्नदाता जिसे हमसभी 'निशा ',
सबको खिलाता भूख में सोता रहा किसान l

डा.नसीमा निशा

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