सुख-समृद्धि-सुसंस्कृति भरकर
तुम पूरन कर दो।
हे ज्ञानदायिनी, वीणावादिनी
मंगल मन कर दो।
हम खाली है अंतस् खाली,
ज्ञान की ज्योत जला दो।
मन निर्मल, मस्तिष्क शुचित
कर, ज्ञान का नीर बहा दो।
मार्ग विमल कर,विद्या-विभा दो,
पथ रोशन कर दो।
हे ज्ञानदायिनी, वीणावादिनी
मंगल मन कर दो।
नेह के पुष्प खिला दो माते,
स्नेहासव से भर दो।
नीरसता जीवन में न जकड़े,
अब ऐसा कुछ कर दो।
वीणा की झंकार से मैया,
मस्त मगन कर दो।
हे ज्ञानदायिनी, वीणावादिनी,
मंगल मन कर दो।
~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
अध्यक्ष : ज. सा. सा. समिति (बिहार)
संपर्क : 7992272251
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400