२१२२,२१२२,२१२२
क्या खुदा मंजूर करता अब दुआ है.....
इश्क़ क्यों लगता मुझे अब बद्दुआ है.....
लिख रहे हैं फिर गजल हम इश्क़ पे हां....
जी अभी कोई नया, शाबा जगा है......
(शाबा= दर्द-ए-दिल)
आइना क्यों साफ करते फिर रहे हो...
गर्द तो माथे पे तेरे ही लगा है......
रात भर सोया नहीं याद में वो...
रात भर गुमशम कहीं रोता रहा है.....
#पारस_गुप्ता
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