(फ़ाइलातुन*४)
(२१२२*४)
चल पड़ा फिर आदमी तन्हाइयों की ओर अब तो......
क्यों भला ये चल पड़ा बर्बादियों की ओर अब तो.....
तुम कहो कैसे करें वो जान की अपनी हिफाज़त....
हर तरफ क़ातिल यहाँ अच्छाइयों की ओर अब तो.......
आप कब तक यूँ ही खुद की जां बचाते जाओगे....
कब तलक छिपकर रहोगे क़ायरों की ओर अब तो.....
देखकर अब रख क़दम को जाल साज़िश सब यहां हैं....
धूप तक रखना गुनाह् परछाइयों की ओर अब तो......
ख़ैर फ़रमा ऐ बशर साहिल पे पहुँच गया सलामत...
डूब जाते कर यक़ीं बैगाइयों की ओर अब तो......
(बशर=आदमी, बैगाइयों=गैर)
जो अकड़ कर ही खड़ा वो टूटकर फिर गिर गया है...
आये जब भी तुम कभी भी आँधियों की ओर अब तो......
चांद सूरज और तारे साथ हैं सब आज कल भी...
तुम हमारे साथ रहना आशिनों की ओर अब तो......
(आशिनों= जिंदगी भर का हमसफ़र)
टूट जायेगा ये मेरा प्यार का दर्पण कभी भी...
फेंकना मत देखो' पत्थर आइनों की ओर अब तो......
#पारस_गुप्ता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400