◆भुजंगप्रयात छंद◆
विधान~
(भुजंगी छंद+गुरु)
[ यगण यगण यगण यगण]
(122 122 122 122 )
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
हरे पीर जो भी सदा ही पराई।
गुने गान गोविन्द के चित्त लाई।।
चले जो सदा न्याय के पंथ जानो।
सुनो"सोम" साँचा उसे संत मानो।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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