◆मनहरन छंद◆
विधान~
[नगण सगण रगण रगण रगण]
(111 112 212 212 212
15वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
नित नमन मातेश्वरी कंठिका धारिणी।
दमन कर दो पाप माँ शत्रु संहारिणी।।
गगन धरती आपका रूप अम्बालिके।
प्रखर लगती कालकी काल माँ कालिके।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400