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सोमवार, 13 अप्रैल 2020

मुक्तक :- आओ कभी इक बार तो, मिलने सजन सजनी से भी - पारस गुप्ता

आओ कभी इक बार तो, मिलने सजन सजनी से भी......
कब तक तकेगी राह को, रोते नयन रजनी में भी......
(रजनी=रात)

कैसी विरह की वेदना, कैसा तेरा ये प्यार है.....
कैसे पोछूं अपने नैना, छिपते नहीं ढकनी से भी......

पारस गुप्ता 

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