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गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

जला ये शहर तो सब अपना घर बचा रहे थे - चराग़ शर्मा

जला ये शहर तो सब अपना घर बचा रहे थे
हम उस घड़ी भी चराग़ों के सर बचा रहे थे
Jalaa ye sheher to sab apna ghar bacha rhe the
Hum us ghadi bhi charaghoN ke sar bacha rhe the

बचा के रक्खा उन्हें चारागर की नज़रों से
जो ज़ख़्म आबरू-ए-चारागर बचा रहे थे
Bacha ke rakkha unhe charagar ki nazaroN se
Jo zakhm aabru-e-charagar bacha rhe the

हमें ये मौत तो मंज़ूर थी, वो शर्त नहीं
हमारी जान वो जिस शर्त पर बचा रहे थे
HumeN ye maut to manzoor thi, vo shart nhi
Hamari jaan vo jis shart par bacha rhe the

बचा ही कौन था जो देखता हमें तेरे बाद
कुछ आइने थे ,सो वो भी नज़र बचा रहे थे
Bacha hi kaun tha jo dekhta humeN tere baad
Kuch aaine the, so vo bhi nazar bacha rhe the

सहर हुई तो ज़रूरत नहीं बची उसकी
वो इक चराग़ जिसे रातभर बचा रहे थे
Sahar hui to zaroorat nhi bachi uski
Vo ik charagh jise raat bhar bacha rhe the

- Charagh

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