आज उषा में ऊर्जा भर दो,
सकल - सधन कर दो।
आ हो दिवाकर! आ हो प्रभाकर!
मंगल - मन कर दो।।2।।
तम का एक-एक तार हटा दो,
हर लो निशा की माया।।2।।
तुम प्रकृति पर दिव्य-विभा कर,
मिटा दो छल की छाया।।2।।
आ हो हुताशन, हे तमनाशन!
सकल किरण कर दो।
आ हो दिवाकर! आ हो प्रभाकर!
मंगल मन कर दो।।2।।
तुम दीप्ति से जग सिञ्चित कर,
सत्य की राह दिखा दो।।2।।
हम भी उज्ज्वल बनकर उभरें,
ऐसा कुछ सिखला दो।।2।।
जड़ता को हर, विद्या विभा कर,
तुम पूरण कर दो।
आ हो दिवाकर! आ हो प्रभाकर!
मंगल मन कर दो।।2।।
✍✍✍✍✍✍✍
~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
अध्यक्ष : वि.ज.ट्र. भारत (बिहार)
संपर्क : 7992272251
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