◆हीर छंद◆
विधान~
[ भगण सगण नगण जगण नगण रगण]
(211 112 111 121 111 212)
18 वर्ण,4 चरण,यति 10-8 वर्णों पर
दो-दो चरण समतुकांत]
साधक नित साधत सब , वंदत कर जोरि कै।
पान करत अमृत गुण, सागर मन बोरि कै।।
नाहक सब जाल जगत, बंधन सब छोर दो।
"सोम"शरण धूल चरण,श्री जुगल किशोर दो।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400