है छेद सफ़ीना में इल्ज़ाम समंदर पे।
बदनाम हुए खुद वो इल्ज़ाम मुकद्दर पे।
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गुमनाम रहे कबसे अश़आर नहीं आये,
बन के वो मिलें ग़ालिब भटके जो गली दर पे।
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सामान बहुत कम था फरियाद हुई इसकी,
तब बोल उठा मुंसिफ तुम आओ गली घर पे।
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अंज़ान नहीं कोई ग़द्दार यहां कितने,
इल्ज़ाम किसी सर का लाओ न कलंदर पे।
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इंसान मिलें बहतर मिल जाएं यहां बदतर,
हो ऐब नहीं फिर भी लग जाए कोई सर पे।
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प्रदीप ध्रुवभोपाली, भोपाल,म.प्र.
दिनांक,23/03/2020
मो.09589349070
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