बहर - 2122 1212 22
काफ़िया - आ
रदीफ - हैं
आसमाँ भी उदास रहता है।
चाँद जबसे जमीं पे उतरा है।।
चाँद तो पास आ गया मेरे।
आजकल आसमाँ अकेला है।।
आ गले से लगा लूँ तुझको मैं।
मुद्दतो बाद आज देखा है।।
रूठने की सजा क्युँ दू तुमको।
सिलसिला जब बहुत पुराना है।।
चन्द असबाब बाँध दो मेरे।
आज ही शह्र छोड़ जाना है ।।
वस्ल की रात आज उनकी है।
आज मुझको जुदा हो जाना है।।
आँखें रोयी बहुत जिन्हें खोकर।
जान देकर उन्हें ही पाना है।।
बंदिशे लाख हो मैं जाऊँगा।
आज उसने मुझे पुकारा है।।
शह्र में खौफ़ हर तरफ़ देखा।
हर कोई अब क़फ़स में बैठा है।।
हे ख़ुदा तूँ उन्हें भी बरकत दे।
जिनमें थोड़ा ग़रूर ज्यादा है।।
आज फिर नम हुई मेरी आँखें।
उसको फिर गैर संग देखा है।।
भूल जा हो सके उसे 'क़ातिल'।
इक दफ़ा छोड़कर जो जाता है।।
क़ातिल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400