अब कोई अहसास न रखना,
गलतफहमियां पास न रखना।
धैर्य तुम्हें न लेने दूँगा।,
अंदर गहरी साँस न रखना।
तुम कृतघ्न थे, छुपकर बैठे,
मानवता का ओढ़ लबादा।
हर अवसर पर, हरेक हाल में,
तुमने बस अपना हित साधा।
तुम अवसर पर काम न आये,
मैं भी काम नहीं आऊँगा।
तुमने स्वार्थ को साधा, फिर
मुझसे ईमान की आस न रखना।
तुम साजिश के तीर पजाते,
हमने भी तूणीर सजाया।
आओ दो-दो हाथ करें अब,
अपना पहलू बहुत बचाया।
छद्म रूप से वार करो तो,
फिर बिन-बाधा वृष्टि करना।
मैं भी अपना दाँव चलूँगा,
तुम थोड़ा अवकाश न रखना।
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~पं० सुमित शर्मा 'पीयूष'
अध्यक्ष : विश्व जनचेतना ट्रस्ट भारत (बिहार इकाई)
संपर्क : 7992272251
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