वज़्न-1222-1222-1222
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हिदायत ये जमाने में निभाना है।
पता आया जहां तो कैदखाना है।
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हिकारत से उन्हें वो देख कर बोले
खुदा जाने कहां पे आबदाना है।
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कहीं मातम उधर बारात है निकली,
निहायत बेरहम ये तो जमाना है।
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कहीं सीरत कहीं सूरत बिकाऊ सब,
बिके सबकुछ किसी को आजमाना है।
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ज़हन्नुम देख आये इस ज़माने का,
बिलायत ज़ीस्त का इक कैदखाना है।
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हुआ था इश्क़ है होता रहेगा *ध्रुव*
बदल जाते करक्टर यूं जमाना है।
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प्रदीप ध्रुवभोपाली, भोपाल,म.प्र.
दिनांक.25/03/2020
मो.09589349070
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