छंद~चौपाई (श्रीरामजन्मोत्सव)
रात स्वप्न आये रघुराई|
दुख की कह सब कथा सुनाई||
बोले त्रेता ले अवतारा|
रामराज्य का चित्र उभारा||
सबके नैनन शोभा पाता|
सब की इच्छा फिर आ जाता||
किन्तु आज यह क्या होता है|
अन्तस् मेरा क्यों रोता है||
संघर्षशील मनुवंश हमारा|
भरतदेश है सबसे प्यारा||
आज दशा नहिं जाय बखानी|
नशाखोर हुइ गयी जवानी||
दोषारोपण और दिखावा|
कहाँ गया अपना पहनावा||
साथ कौन अब किसका देता|
छीना झपटी सब कर लेता||
निर्धन निर्बल दीन मलीना|
कठिन बहुत है इनका जीना||
एक वर्ग मध्यम है न्यारा|
असमंजस में सोचत हारा||
है तो सोता सभी सुखों का|
एक सिन्धु अब सभी दुखों का||
घर घर में है खूनी लीला|
होता शब्द प्रहार नुकीला||
नेताओं का राम खिलौना|
राजनीति का खेल घिनौना||
घोर निराशा छेड़ प्रसंगा|
जहाँ तहाँ हैं जब तब दंगा||
धनलोलुप हैं पद में अन्धे|
बहुत घिनौने इनके धन्धे||
अपने कर्मों का फल पाता|
समय चूकि पुनि पछताता||
प्रजातन्त्र में प्रजा दुखारी|
दीन हीन क्यों विवश विचारी||
दूध हीन क्यों शिशु की माता|
कौन धर्म कुल रीति निभाता||
मात पिता की होत न सेवा|
चाहत दोनउ हाथन मेवा||
दूर दूर सब रिश्ते नाते|
कौन हँसाता सभी रुलाते||
रामराज्य जो चाहो आये|
यदि चाहो जो दुख छट जाये||
साथ खड़े सुख-दुख में दीखो|
पहले मिलजुल रहना सीखो||
दुष्ट माथ पर करो प्रहारा|
करो लोभ का शीश उतारा||
एक भक्त ने लंका जारी|
उससे हर पल विपदा हारी||
राम नाम का अधिकारी है|
राम उसी पर वलिहारी है||
है बलशाली और विवेकी|
जग गाता है उसकी नेकी||
रामराज्य है उसकी थाती|
चीर दिखाता अपनी छाती||
पौरुष का है एक शरीरा|
हनुमत मेरा है बलवीरा||
संकेतों में है समझाया|
क्यों तूने दुख ओढ़ बिछाया||
दिलीप कुमार पाठक सरस
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