रंजन छंद
विधान~2111111,2111111,2111111,21122|
चार चरण, दो दो चरण समतुकान्त|
तू अति नटखट, दौड़त सरपट,
आ अब झटपट, राज दुलारे|
पावन मन गुन, मंतर ध्वनि धुन,
होत यजन सुन,आ बबुआ रे||
भावत चितवन, है सब मम धन,
आवत बन ठन, है छवि प्यारी||
अंजन अँखियन,है रस बतियन,
भागत विथियन, चंचलधारी||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
संस्थापक
जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति ~226
बीसलपुर पीलीभीत (उ. प्र.)
छंद~रुचिरा
विधान~21122,111122|
चार चरण, दो दो समतुकान्त
💐💐💐💐💐💐💐💐
मौन हुआ हूँ ,खुटपुट भारी|
देत खड़ी है, जब तब गारी|
मात हमारी ,सब सच मानो|
ग्वालिन राधा,ठनगन जानो|
दूध पिलाती ,दधि नवनीता|
काम करावै,सब विपरीता|
घाघर चोली, मम पहनाती|
और सुनौ माँ, सरस नचाती|
बूझति बंशी, इत कित राखै|
चोर बड़ी है, समुझत भाखै|
लालन झूठी, कहत कहीं है|
माखन चोरी, करत नहीं हैं|
ग्वालिन गोरी,सब पथ बाधा|
माँ अति नीकी ,सुन वह राधा|
कोप दिखावै, कबहुँ न छोरी|
प्रीत जुड़ी है, सचमुच भोरी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
छंद~रुचिरा
विधान~21122,111122|
चार चरण, दो दो समतुकान्त
💐💐💐💐💐💐💐💐
मौन हुआ हूँ ,खुटपुट भारी|
देत खड़ी है, जब तब गारी|
मात हमारी ,सब सच मानो|
ग्वालिन राधा,ठनगन जानो|
दूध पिलाती ,दधि नवनीता|
काम करावै,सब विपरीता|
घाघर चोली, मम पहनाती|
और सुनौ माँ, सरस नचाती|
बूझति बंशी, इत कित राखै|
चोर बड़ी है, समुझत भाखै|
लालन झूठी, कहत कहीं है|
माखन चोरी, करत नहीं हैं|
ग्वालिन गोरी,सब पथ बाधा|
माँ अति नीकी ,सुन वह राधा|
कोप दिखावै, कबहुँ न भोरी|
प्रीत जुड़ी है, सरगम मोरी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
छंद~रुचिरा
विधान~21122,111122|
चार चरण, दो दो समतुकान्त
💐💐💐💐💐💐💐💐
मौन हुआ हूँ ,खुटपुट भारी|
देत खड़ी है, जब तब गारी|
मात हमारी ,सब सच मानो|
ग्वालिन राधा,ठनगन जानो|
दूध पिलाती ,दधि नवनीता|
काम करावै,सब विपरीता|
घाघर चोली, मम पहनाती|
और सुनौ माँ, सरस नचाती|
बूझति बंशी, इत कित राखै|
चोर बड़ी है, समुझत भाखै|
लालन झूठी, कहत कहीं है|
माखन चोरी, करत नहीं हैं|
ग्वालिन गोरी,सब पथ बाधा|
माँ अति नीकी ,सुन वह राधा|
कोप दिखावै, कबहुँ न भोरी|
चन्द्र समाना, वह बृज गोरी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
रंजन छंद
विधान~2111111,2111111,2111111,21122|
चार चरण, दो दो चरण समतुकान्त|
तू अति नटखट, दौड़त सरपट,
आ अब झटपट, राज दुलारे|
पावन मन गुन, मंतर ध्वनि धुन,
होत यजन सुन,आ बबुआ रे||
भावत चितवन, है सब मम धन,
आवत बन ठन, है छवि प्यारी||
अंजन अँखियन,है रस बतियन,
भागत विथियन,क्यों बनवारी||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
तन्त्री छंद
😄🙏🏻😄
सरस गवैया, है अति भैया,
सुनत सुनत, सब के सब हारे|
शब्द हमारे, भाव तुम्हारे,
छोड़ हमें, फिर कौन पुकारे||
सोम सरल~से,हैं अविरल~से,
देख हमें, जब तब मुस्काते|
हँसी ठिठोली, मीठी बोली,
मिल जाते, अपने गले लगाते||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
तन्त्री छंद
8,8,6,10 पर यति, प्रति चरण 32 मात्रा,दो दो चरण समतुकान्त|चरणान्त~22
आपै राघव, आपै माधव
मन भज ले, अब कृष्णा कृष्णा|
जो कलुषित अति, कर पावन मति,
ईश नाम, मेटे मन तृष्णा||
जय जय गिरधर,जय जय नटवर,
वंशीधर, हे रास रचैया|
मुरलीवाले, सुन रे ग्वाले,
चरण शरण, निज आप बसैया||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*◆तंत्री छंद◆*
विधान~ प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं
पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो
चरण समतुकांत।
आओ आओ,गाओ गाओ,
छंद रचे,सरस गुनगुनाओ|
मीठे बयना, प्यारे नयना,
हरषाओ, आ रस बरसाओ||
आयी रैना, नाहीं चैना,
चुप रहते, नित दुख सहते जी|
राहें गहते, नैना बहते,
तुम बिन हम ,किससे कहते जी||
तुम मेरा मन, मेरा जीवन,
खुशियों के, आँगन में आना|
आँखों भरकर, देखूँ जीभर,
मुझे हँसा,तुम आ हँस जाना||
आ मुस्काना, गले लगाना|
सरस मिलन , वन कुंजन में हो||
अँखियन अंजन, बतियन रंजन|
छंदों का,रस गुंजन में हो||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
तन्त्री छंद आधारित एक गीत
विधान~8,8,6,10 पर यति, 32मात्राएँ|
दो चरण समतुकान्त, चरणान्त~दो गुरु|
--------------💐------------------
भीगी अँखियाँ,अँसुअन जल से,
थक हारे, पग घर लौटाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
नैनन अंजन, आँझ प्रिये जब,
बन ठन के,मिलने तुम आतीं|
पैर पैंजनी,करती छम छम,
कुछ सुनतीं,कुछ तुम कह जातीं||
फूल मिलन के, खिलते गंधिल,
पथ लख थक, मन में मुरझाये|
उस दिन तुमने,कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
मन में सोचा, जब आयेगी,
खायेगी, है चाट चटोरी|
चार समोसा, मिर्च पकौड़ी,
लीं टिक्की, दो तीन कटोरी||
गरम गरम थीं, फिर सब ठंडी,
ठगे खड़े, कुछ समझ न पाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे, तुम क्यों नहिं आये||
फूल खिले सब, झरने लागे,
झूठे~से,मन टूटे वादे|
प्यास हृदय की ,घुट घुट बोली,
चल घर अब, सिर बोझा लादे||
मौन बुलाये,कौन सुनाये,
छंदों में, सरस गुनगुनाये|
उस दिन तुमने, कहा कि आना,
हम पहुँचे,तुम क्यों नहिं आये||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
राधारमण छंद
111 111 222 112
🙏🏻श्री गणपति स्तुति🙏🏻
-------------- 💐💐----------------
सुधिजन शुचिता सम्बोधक हैं|
गणपति मन प्यारे मोदक हैं||
सब दुख हरते कौतूहल में||
सब सुख सबको देते पल में||
पशुपति पटरानी के ललना|
खलदल बल को आके दलना||
सुन गजमुखधारी है विनती|
तव चरणन हो मेरी गिनती||
बचपन मन के प्यारे तुम हो|
छलबल जग से न्यारे तुम हो||
दुख हर सुख की मंजूषक है|
सब कहत सवारी मूषक है||
तड़फत मछली~सी है कहती|
मम मति अति माया में रहती||
तन मन भव व्याधा आप हरो|
उर सरस उजाला आप करो||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🌹🌻 *राधारमण छंद* 🌻🌹
🔧विधान - नगण नगण मगण सगण
१११ १११ २२२ ११२
🌴🌹🌻🌺🌼🌺🌼
हर पल मन नाचे ज्यों तकली|
मुख पर मुख है दूजा नकली||
कथनि करनि भारी अंतर है|
जग धन बल जादू मंतर है||
नवल कमल जैसे है खिलता|
नित छलबल वैसे है मिलता||
सब कुछ जग की माया करती|
भ्रम जनमत नाहीं है डरती||
पिसत रहत दो पाटों चकली|
समझत असली होता नकली||
मृदुल बचन में आके कहना|
तन मन दुख क्यों देना सहना||
कह सुन लख पीड़ा जीवन की|
अब कुछ कर ले तू भी मन की||
कुछ हम कह लें आ जा सुन लें|
चल सुख दुख के साथी चुन लें||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
संस्थापक सचिव
जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति ~226
*'कलाधर छंद'*
•~•~•~•~•~•~•
विधान - गुरु लघु की पन्द्रह आवृत्ति और एक गुरु |
हिन्दवीर का प्रहार,शत्रु कौ उखाड़ देत|
नेति~नेति है प्रणाम, हिन्द के सुवीर कौ|
हंस~सा विवेक पास,हिन्द विश्व का विजेत|
जान लेत पास आयि, नीर और क्षीर कौ||
पाक~चीन रोज~रोज, आँख हैं दिखात आज|
दाँत तोड़ पेट फाड़,मेटि हौ लकीर कौ||
आँख दोउ फोड़फाड़,हाथ~पाँव तोड़ताड़|
चीरफाड़ फेंकि देउ, शत्रु के शरीर कौ|
दिलीप कुमार पाठक सरस
*◆सुमति छंद◆*
विधान-नगण रगण नगण यगण
(111 212 111 122)
2, 2 चरण समतुकांत,4 चरण।
सरस हाथ जोड़ नत पुकारे|
धरत सोम छंद पद हमारे||
हृदय शब्द भाव रचत आया|
सरल प्रीत को हृदय लगाया||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
लघुगति छंद
💐🙏🏻💐
रघुवरयश हँस हँस कहते|
रघुपति उर हनुमत रहते||
रघुवर प्रिय हनुमत रसना|
हनुमत मम तन मन बसना||
सरस रमत प्रभु घर घर जी|
अँखियन बतियन रघुवर जी||
रघुवर रघुपति चख चखना|
रघुवर रघुवर नित रटना||
रघुपति हर पल दुख हरते|
हनुमत सब सुखमय करते||
जब-जब भजत अवधपति को|
हरत तुरत दुख दुरमति को||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
लघुगति छंद
धड़कन धड़कत सम धड़कें|
रघुवर हनुमत तन फड़कें||
भजत रटत गुण रघुवर के|
रहत हृदय नित हरि हर के||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
तिन्ना छंद~222 2
😄🙏🏻😄🙏🏻😄🙏🏻😄
लल्ला आ जा|
टॉफी खा जा||
ऐसी वैसी|
दूरी कैसी??
टिल्ली टूला|
झूलो झूला|
मिट्ठू गोलू|
आजा भोलू||
बोली म्याऊँ|
आऊँ खाऊँ||
बिल्ली आई|
जागी माई||
भिन्डी तोरी|
गोरी छोरी||
मोटा कद्दू|
लाये दद्दू||
फाड़ा कुर्ता|
आलू भुर्ता ||
चोखा बाटी|
खा ले नॉटी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
तिन्ना छंद~222 2
बोलो भाई |
पाटो खाई||
प्यारा न्यारा|
भाईचारा||
तिन्ना मन्ना|
मीठा गन्ना||
आओ खाओ|
खेलो जाओ|
चीजें पाओ|
पैसा लाओ||
खाऊँ केला|
देखूँ मेला||
चाचा चच्ची
बातें सच्ची|
दादा दादी|
लाये खादी||
गर्मी आयी|
कुल्फी खायी||
दूल्हे राजा|
बाजे बाजा||😄😄😄😄😄
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
क्रीड़ा छंद~122 2
लला प्यारे|
हमारे रे||
सँवारे हूँ|
सहारे हूँ||
चले आना|
नहीं जाना||
रहा प्यासा|
बँधी आशा||
सुरीला~सा
रँगीला~सा
कि गा लेना|
सुना देना||
न आयेगा |
न जायेगा||
वही जीता|
पढी गीता||
दिलीप कुमार पाठक सरस
बीसलपुर (पीलीभीत) उ. प्र.
*सुजान छंद*
[14,9मात्राओं पर यति,अंत में गुरु लघु]
कहीं खुशी है दुःख कहीं,कैसा संयोग|
करे प्रतीक्षा मिलन खड़ा,योग या वियोग||
तू तू मे मे घर घर है, खा ठोकर रोज|
छल बल से नित मिले यहाँ,छप्पन खा भोग||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆ वीर/आल्हा छंद [सम मात्रिक]◆
विधान –[ 31 मात्रा, 16,15 पर यति,
चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल,
कुल चार चरण,
क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत]
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
धूप कहूँ नहिं देय दिखाई,
पाले की चहुँतरफा मार।
थर-थर,थर-थर तन है काँपै,
ठंडी-ठंडी चलै बयार।।
साँझ भई सब तापन बैठे,
बीड़ी हुक्का लियो उठाय।
पहले मसली है तम्बाकू,
फिर फटकारी दई लगाय।।
कुछ तौ सेंकत हाथ-पाँव हैं,
कुछ की होतीं आँखैं चार।
दद्दा बैठे गप्पैं हाँकैं,
होय ठहाकन की बौछार ।।
बहुत देर से भरकन कौ जौ,
ठंडो बिस्तर रहो बुलाय।
शीत लहर को झोंका आओ,
आगी सारी दई बुझाय।।
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