कृष्ण /वपु छंद~221 1
रोये हम|
आँखें नम||
रातों अब|
सोते कब||
यादें मन|
आतीं तन||
होली रँग|
खेले सँग||
मेघा सुन|
प्यासी धुन||
देखूँ दर|
आओ घर||
तेरे बिन|
काटे दिन||
लम्बा दुख|
दे जा सुख||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
कृष्ण /वपु छंद~221 1
विषय~कोंपल~☘☘☘
हैं कोमल|
ये कोंपल||
हो चंचल|
वृन्तों दल||
हे जीवन|
सींचो मन||
झूमे तन|
वृन्दावन ||
स्नेहाजल|
दे दे चल|
तेरा बल|
मैं कोंपल||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊��
दिलीप कुमार पाठक सरस
देवी छंद~112 2
चल आ जा|
अब गा जा||
तुम मेरे|
हम तेरे||
कजरारी|
रतनारी||
सखियाँ हैं|
अँखिया हैं||
रस घोला|
जब बोला||
सुन प्यारे|
दिल हारे||
धुन ऐसी|
मधु जैसी||
जब आये|
तब गाये||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
देवी छंद~112 2
चल आ जा|
अब गा जा||
तुम मेरे|
हम तेरे||
कजरारी|
रतनारी||
सखियाँ हैं|
अँखियाँ हैं||
रस घोला|
जब बोला||
सुन प्यारे|
मन हारे||
धुन ऐसी|
मधु जैसी||
जब आये|
तब गाये||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
सुमति छंद~111 212 111 122
कलम हाथ में अब गह लीना|
सरस काव्य को सब नित पीना||
गुनत सोम पावन मन होता|
रटत नाम सुन्दर शुचि स्रोता||
दिलीप कुमार पाठक सरस
सुमति छंद~111 212 111 122
कलम हाथ में अब गह लीन्हा|
सरस काव्य को मन महुँ चीन्हा||
गुनत सोम पावन मन होता|
रटत नाम सुन्दर शुचि स्रोता||
दिलीप कुमार पाठक सरस
सुमति छंद
सरस सोम रोम बसत साँची|
लिखत सोम नाम सरस बाँची||
कहत सोम सोम मन शत बारा|
कबहुँ हो न ता घर बँटवारा ||
दिलीप कुमार पाठक सरस
रंगी छंद~212 2
लाउ तिल्ली|
देख बिल्ली||
दीपबाती|
आ जलाती||
पान पानी|
तान तानी||
रोड बिच्ची|
पिच्च पिच्ची||
बैठ पीढ़ी|
सुर्र बीड़ी||
ला तमाकू|
फट्ट थू थू||
है बजारू|
पी न दारू||
खैंच सुट्टा|
हैं न छुट्टा||
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दिलीप कुमार पाठक सरस 😀
कदली छंद~112 1
भज साथ|
जग नाथ|
खिल प्रात|
जलजात||
वह मूल|
अनुकूल|
सब धूल|
प्रतिकूल|
हरियोग|
चख भोग|
हर रोग|
हँस लोग|
सब काम|
हरि नाम|
भज राम|
जय राम|
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
वसन्ततिलका छंद
221 211 121 121 22
आओ चले हृदय की गति है रुकी~सी|
प्यासे हुए नयन भी पलकें झुकी~सी||
बोले सदैव मुझसे तुमको पुकारूँ|
मैं भी उसे निरख के मन आज (वारूँ) हारूँ||
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दिलीप कुमार पाठक सरस
वसंततिलका~छंद
221 211 121 121 22
बातें करें सरस लोग वही पुरानी|
मैया पुकारत सुनो ललना कहानी||
कौआ उड़ो पकड़ हार गले न पाया|
चीनी दही सब रखो नहिं लौट आया||
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
राधारमण छंद
विधान - नगण नगण मगण सगण
१११ १११ २२२ ११२
नटखटपन छोड़ो आप सभी|
झटपट उठ बैठो आज अभी||
जलभर कर लाओ प्यास लगी|
अब सरस कमाओ आस जगी||
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🌷 राधारमण छंद 🌷
[नगण नगण मगण सगण]
(111 111 222 112)
12 वर्ण, 4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत]
मन उलझन में है नाथ धँसा|
चरण शरण में लो आप बसा||
मम प्रभु सम प्यारा कौन कहो|
नटवर जग न्यारा नाम गहो||
समझत सबकी लीला मन की|
सुधिजन कहते वृंदावन की||
तनमन बसते कान्हा अपने|
सच सब मन के होते सपने||
प्रभु सम जग में को है कहतीं|
नटखट सँग राधा जी रहतीं||
सब समझत हैं लीलाधर जी|
हम सब कहते आना घर जी||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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