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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- परहित में सब सुख मिलता है - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 22, 22, 22, 22

परहित  में सब  सुख मिलता है ।
गुणियो का अनुभव कहता  है ।।

पी  लेता    जो   जह्र   द्वेष का  ।
शिव   शंभू   जैसा   बनता   है ।।

हीरा    बनता     है  पत्थर   वो  ।
सदियों  तक जो दुख सहता है ।।

सदियों   तक   वो  याद  रहेगा  ।
संत  कबीरा   जो  लिखता  है ।।

चमक  अटल जी की सब देखो ।
*कुंदन*  भी फीका लगता है  ।।

तुलसी   गुरुनानक   वाणी   से ।
गंगा    में   अमृत    बहता  है  ।।

गीता    और  कुरान  सुनो सब  ।
मेल  मिलाप   तभी  बढ़ता  है ।।

जन्म   मिले  भारत  में   हरदम ।
*साथी* ये  हसरत   रखता है ।।

🌻🌻🌻🌻🌻547🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

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