बहर- 1222*4
अजब फितरत ये दुनियाँ की ,
कलम से हम सुनाते है ।
मिलाते जिसको मिट्टी में ,
उसे काँधे बिठाते है ।।
जवानी की यहाँ कीमत ,
बुढ़ापा आंकलन करता ।
पिता की परवरिश बच्चे ,
यहाँ खर्चा बताते है ।।
है गैरत मंद ये इन्सां ,
हकीकत मानता ये कब ।
निकल जाती है जब बारिश ,
तो छाते जंग खाते है ।।
बुलंदी छू रहे उनको ,
यही पैगाम दे देना ।
जड़े मत खोदना उनकी ,
तुम्हे आगे बढ़ाते है ।।
रखो विश्वास बस खुद पर ,
कभी मायूस मत होना ।
हमारे जो करीबी है ,
वही हमको गिराते है ।।
समझते जिंदगी को जो ,
यहाँ किरदार के जैसा ।
खुशी उनको मिले या गम ,
सदा ही मुस्कराते है ।।
रखे इन्सानियत दिल में ,
इरादे नेक हो जिसके ।
वही *साथी* मुकद्दर का
सिकंदर बन ही जाते है ।।
🌻🌻🌻🌻🌻489🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
मो. 9981013061
अजब फितरत ये दुनियाँ की ,
कलम से हम सुनाते है ।
मिलाते जिसको मिट्टी में ,
उसे काँधे बिठाते है ।।
जवानी की यहाँ कीमत ,
बुढ़ापा आंकलन करता ।
पिता की परवरिश बच्चे ,
यहाँ खर्चा बताते है ।।
है गैरत मंद ये इन्सां ,
हकीकत मानता ये कब ।
निकल जाती है जब बारिश ,
तो छाते जंग खाते है ।।
बुलंदी छू रहे उनको ,
यही पैगाम दे देना ।
जड़े मत खोदना उनकी ,
तुम्हे आगे बढ़ाते है ।।
रखो विश्वास बस खुद पर ,
कभी मायूस मत होना ।
हमारे जो करीबी है ,
वही हमको गिराते है ।।
समझते जिंदगी को जो ,
यहाँ किरदार के जैसा ।
खुशी उनको मिले या गम ,
सदा ही मुस्कराते है ।।
रखे इन्सानियत दिल में ,
इरादे नेक हो जिसके ।
वही *साथी* मुकद्दर का
सिकंदर बन ही जाते है ।।
🌻🌻🌻🌻🌻489🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
मो. 9981013061
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