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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- यकींन जिन पर हमें बहुत था , वही तो खंजर चला रहे है - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 12122, 12122, 12122,12122

यकींन जिन पर हमें बहुत था ,
         वही तो खंजर चला रहे है ।
यकींन जिन पर कभी नही था ,
       वही तो मरहम लगा रहे है ।।

हमें पता ये है उनकी फितरत ,
     छुपी नही है जनाब बिलकुल ।
गले मिले जब थी ईद उस दिन ,
       नज़र ईद पर ही आ रहे है ।।

बहुत जताते थे प्यार हमसे ,
    तभी तुम्हे तो ये दिल दिया था ।
जिन्हे समझते थे चाँद अपना ,
       वही अमावस दिखा रहे है ।।

है प्यार करना खुदा का सजदा,
           इसे इबादत तुम्ही बताते ।
मिजाज किसने तुम्हारा बदला ,
     गुनाह अब क्यो बता रहे हो ।।

नही समझता है प्यार मजहब ,
       नही मानता ये कोई सरहद ।
इन्ही अदाओ पे मर मिटे हम,
       तभी से सपने सजा रहे है ।।

हमें समझते तुम्ही तो *साथी*,
           ये रंग हुश्ने सभी तुम्हारा ।
नही समझते अगर हमें अब ,
    अभी जहां से लो जा रहे है ।। 

🌻🌻🌻🌻475🌻🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

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