बहर- 12122, 12122, 12122,12122
यकींन जिन पर हमें बहुत था ,
वही तो खंजर चला रहे है ।
यकींन जिन पर कभी नही था ,
वही तो मरहम लगा रहे है ।।
हमें पता ये है उनकी फितरत ,
छुपी नही है जनाब बिलकुल ।
गले मिले जब थी ईद उस दिन ,
नज़र ईद पर ही आ रहे है ।।
बहुत जताते थे प्यार हमसे ,
तभी तुम्हे तो ये दिल दिया था ।
जिन्हे समझते थे चाँद अपना ,
वही अमावस दिखा रहे है ।।
है प्यार करना खुदा का सजदा,
इसे इबादत तुम्ही बताते ।
मिजाज किसने तुम्हारा बदला ,
गुनाह अब क्यो बता रहे हो ।।
नही समझता है प्यार मजहब ,
नही मानता ये कोई सरहद ।
इन्ही अदाओ पे मर मिटे हम,
तभी से सपने सजा रहे है ।।
हमें समझते तुम्ही तो *साथी*,
ये रंग हुश्ने सभी तुम्हारा ।
नही समझते अगर हमें अब ,
अभी जहां से लो जा रहे है ।।
🌻🌻🌻🌻475🌻🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
यकींन जिन पर हमें बहुत था ,
वही तो खंजर चला रहे है ।
यकींन जिन पर कभी नही था ,
वही तो मरहम लगा रहे है ।।
हमें पता ये है उनकी फितरत ,
छुपी नही है जनाब बिलकुल ।
गले मिले जब थी ईद उस दिन ,
नज़र ईद पर ही आ रहे है ।।
बहुत जताते थे प्यार हमसे ,
तभी तुम्हे तो ये दिल दिया था ।
जिन्हे समझते थे चाँद अपना ,
वही अमावस दिखा रहे है ।।
है प्यार करना खुदा का सजदा,
इसे इबादत तुम्ही बताते ।
मिजाज किसने तुम्हारा बदला ,
गुनाह अब क्यो बता रहे हो ।।
नही समझता है प्यार मजहब ,
नही मानता ये कोई सरहद ।
इन्ही अदाओ पे मर मिटे हम,
तभी से सपने सजा रहे है ।।
हमें समझते तुम्ही तो *साथी*,
ये रंग हुश्ने सभी तुम्हारा ।
नही समझते अगर हमें अब ,
अभी जहां से लो जा रहे है ।।
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कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
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