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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- प्यार करना अगर जुर्म दिलवर , आप बेशक सजा दीजिएगा - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर- 212, 212, 212, 2

प्यार करना अगर जुर्म दिलवर , आप बेशक सजा दीजिएगा ।
होठ पर होठ इक बार रख दो , बाद सूली चढ़ा दीजिएगा ।।

खूबसूरत बला यार तुम हो , शाइरी दिल से खुद ही निकलती ।
शाइरी खत की इक बार पढ़ लो , चाहे बेशक जला दीजिएगा ।।

दोष अपना नही उम्र का है , प्यार होता इसी उम्र में है ।
प्यार थोड़ा अगर हमसे है तो , बेझिझक अब बता दीजिएगा ।।

मीर की शायरी सी तू लगती , शेर गालिब के हम भी तो लगते ।
आओ मिलकर गजल हम बनाऐ , फिर इसे गुनगुना दीजिएगा ।।

*पथ* ये मुश्किल भरा लगता फिर भी , चल के इस पर दिखाएंगे जग को ।
फूल से भी लगेगे वो कोमल , चाहे काँटे बिछा दीजिएगा ।।

तुम दुल्हन बन सको गर न मेरी , एक वादा करो आज मुझसे ।
हाथ तेरे हिना जब रचेगी , नाम मेरा लिखा दीजिएगा ।।

बेवफा उसको *साथी* कहे क्यो , प्यार उसने किया ही नही है ।
बस मेरे दोस्त बनकर के रहना , दोस्त को मत भुला दीजिएगा ।।

🌻🌻🌻🌻🌻572🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

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