बहर- 2122, 2122 , 212
चाँद हो फिर भी रहो औकात में ।
दाग हर अच्छा नही सौगात में ।।
जीत धोखे से मिली क्या जीत हैं
।
जीत का केवल मजा शह- मात में ।।
दूर रहना चाँदनी से चाँद तू ।
चाँद खिलता कब अमावस रात में ।।
आजकल के आशिको को देख लो ।
जैसे हो मेढ़क कई बरसात में ।।
खून नित इंन्सानियत का हो रहा ।
लाल कहते माँ मिली खैरात में ।।
किस कद़र दौलत बनी है अब खुदा ।
लोग भूले आचरण हर बात में ।।
गुनगुनाते है यहाँ *मच्छर* भी तो ।
क्यो लगे है हम बड़ी आफ़ात में ।।
राह से *साथी* मत बताओ अब हमें ।
हम नये दूल्हे नही बारात में ।।
🌻🌻🌻🌻🌻574🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी" डबरा मो. 9981013061
आफ़ात -मुसीबत
चाँद हो फिर भी रहो औकात में ।
दाग हर अच्छा नही सौगात में ।।
जीत धोखे से मिली क्या जीत हैं
।
जीत का केवल मजा शह- मात में ।।
दूर रहना चाँदनी से चाँद तू ।
चाँद खिलता कब अमावस रात में ।।
आजकल के आशिको को देख लो ।
जैसे हो मेढ़क कई बरसात में ।।
खून नित इंन्सानियत का हो रहा ।
लाल कहते माँ मिली खैरात में ।।
किस कद़र दौलत बनी है अब खुदा ।
लोग भूले आचरण हर बात में ।।
गुनगुनाते है यहाँ *मच्छर* भी तो ।
क्यो लगे है हम बड़ी आफ़ात में ।।
राह से *साथी* मत बताओ अब हमें ।
हम नये दूल्हे नही बारात में ।।
🌻🌻🌻🌻🌻574🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी" डबरा मो. 9981013061
आफ़ात -मुसीबत
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