बहर-2122, 2122 , 212
दिल हमारा आशिकाना हो गया ।
लोग कहते हैं तराना हो गया ।।
क्यो नही ईश्वर खुदा हमको मिला ।
सिर झुकाते तो जमाना हो गया ।।
लूटने का काम अब मुश्किल बहुत ।
आदमी अब हर सयाना हो गया ।।
आज के अखबार चैनल क्या हुऐ ।
काम केवल सच छुपाना हो गया ।।
छीनते है खास ही हक आम का ।
छीनना भी हक जताना हो गया ।।
नफरते *साथी* बड़ी अब किस कदर ।
आज तो मजहब फसाना हो गया ।।
🌻🌻🌻🌻🌻575🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
दिल हमारा आशिकाना हो गया ।
लोग कहते हैं तराना हो गया ।।
क्यो नही ईश्वर खुदा हमको मिला ।
सिर झुकाते तो जमाना हो गया ।।
लूटने का काम अब मुश्किल बहुत ।
आदमी अब हर सयाना हो गया ।।
आज के अखबार चैनल क्या हुऐ ।
काम केवल सच छुपाना हो गया ।।
छीनते है खास ही हक आम का ।
छीनना भी हक जताना हो गया ।।
नफरते *साथी* बड़ी अब किस कदर ।
आज तो मजहब फसाना हो गया ।।
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कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
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