बहर - 122*4
रहे पास वो सादगी छूटती है ।
उसे छोड़ दे जिन्दगी छूटती है ।।
नही छोड़ सकते है हम *देश* अपना ।
मुहब्बत की अपनी गली छूटती है ।।
विदाई किसे कहते बाबुल से पूछो ।
पहाड़ों से जैसे नदी छूटती है ।।
करो इश्क यारो समझ हैसियत को ।
अधर में तभी आशिक़ी छूटती है ।।
नही देखना ख्वाब परियो के बिलकुल ।
जवानी में ही ताज़गी छूटती है ।।
मुहब्बत नही उम्र बंधन समझती ।
बुढा़पे में कब शायरी छूटती है ।।
ये मतलब की दुनियाँ लगे मतलबी क्यो ।
कहो सच नही दोस्ती छूटती है ।।
धुँआ धुन्ध धोखा सभी एक *साथी* ।
सुनो इनसे कब ज्यादती छूटती है ।।
🌻🌻🌻🌻🌻571🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव
"साथी"डबरा
बरहमी - गुस्सा , क्रोध
रहे पास वो सादगी छूटती है ।
उसे छोड़ दे जिन्दगी छूटती है ।।
नही छोड़ सकते है हम *देश* अपना ।
मुहब्बत की अपनी गली छूटती है ।।
विदाई किसे कहते बाबुल से पूछो ।
पहाड़ों से जैसे नदी छूटती है ।।
करो इश्क यारो समझ हैसियत को ।
अधर में तभी आशिक़ी छूटती है ।।
नही देखना ख्वाब परियो के बिलकुल ।
जवानी में ही ताज़गी छूटती है ।।
मुहब्बत नही उम्र बंधन समझती ।
बुढा़पे में कब शायरी छूटती है ।।
ये मतलब की दुनियाँ लगे मतलबी क्यो ।
कहो सच नही दोस्ती छूटती है ।।
धुँआ धुन्ध धोखा सभी एक *साथी* ।
सुनो इनसे कब ज्यादती छूटती है ।।
🌻🌻🌻🌻🌻571🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव
"साथी"डबरा
बरहमी - गुस्सा , क्रोध
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