बहर- 2122, 1212 , 22
प्यार ही जिन्दगी नही होती ।
मान लो बन्दगी नही होती ।।
मत करो जंग तुम *मुकद्दर* से ।
अच्छी ये बानगी नही होती ।।
दफ्न बारूद तो वही होता ।
आग जिसमें लगी नही होती ।।
खूबसूरत है वो गुलाबो सी ।
देखकर दिल्लगी नही होती ।।
झूलती वो है गैर बाहों में ।
देखना सादगी नही होती ।।
*प्रेम* में सबको भुलाना *साथी* ।
ऐसे दीवानगी नही होती ।।
🌻🌻🌻🌻582🌻🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
प्यार ही जिन्दगी नही होती ।
मान लो बन्दगी नही होती ।।
मत करो जंग तुम *मुकद्दर* से ।
अच्छी ये बानगी नही होती ।।
दफ्न बारूद तो वही होता ।
आग जिसमें लगी नही होती ।।
खूबसूरत है वो गुलाबो सी ।
देखकर दिल्लगी नही होती ।।
झूलती वो है गैर बाहों में ।
देखना सादगी नही होती ।।
*प्रेम* में सबको भुलाना *साथी* ।
ऐसे दीवानगी नही होती ।।
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कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

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