श्री गणेश
एक हाथ लेखनी है एक हाथ अंकुश है,
शस्त्र और शास्त्र दोनों साधते हैं कर में.
लोक-क्षेत्र-दिक्पाल रहते हैं बाँधे हाथ,
माथ को झुकाए सदा आपकी डगर में.
कहते हैं, आप कभी भक्तों को भुलाते नहीं,
भक्त भूल जाएँ भले भ्रम के भँवर में.
ऋद्धि-सिद्धि, क्षेत्र-लाभ सहित पधारो प्रभु,
मुझ बुद्धि-बलहीन याचक के घर में.
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आपकी प्रशंसा हेतु सिद्ध मुनियों के बीच,
आशा है कि मेरी भाव-भाषा अनुमन्य है.
परहित हेतु आप करते सदैव कार्य,
आपका औदार्य तो सदेह पर्जन्य है.
आपसे ही शब्द चेतना को लब्ध होते प्रभु,
कवि सारी सृष्टि में ही आपसा न अन्य है.
आपके लिखे की धन्यता को तौल पाया कौन,
आप पर लिखा शब्द-शब्द धन्य-धन्य है.
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आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ (उ.प्र.)
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