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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- नयना कटार तेरे दिल पे मिरे चला जा - दिलीप पाठक



 


2212 122 2212 122
मुतफायलुन फऊलून मुतफायलुन फऊलुन
 
नयना कटार तेरे दिल पे मिरे चला जा|
बनके दिखा दिवानी अपना मुझे बना जा||
 
फिर गंध आ रही है, फिर फूल खिल रहे हैं |
आयी बहार फिर से, मकरन्द तू पिला जा||
 
है तू बड़ी खिलाड़ी मैं हूँ बड़ा अनाड़ी|
ये प्यार का पहाड़ा,तू प्यार से पढ़ा जा||
 
ये लब तुझे पुकारें अँखियाँ करें इशारे|
आजा गले लगा जा बाहों में' आ समा जा||
 
अंगूर से बनी तू प्यासा हृदय हमारा|
मदहोश मय के' प्याले आके मुझे पिला जा||
 
करता सुनी सुनायी बातें वही पुरानी|
आया नया जमाना कुछ तो नया सिखा जा||
 
कान्हा खड़ा अकेला वंशी बजा रहा है |
कितना अधीर होता धीरज जरा बँधा जा||
 
कब कौन क्या कहेगा कब कौन क्या करेगा |
हैं प्रश्न अटपटे से उत्तर मुझे सुझा जा||
 
आ पास मुस्करा लें हँस लें जरा हँसा लें|
मिल साथ गुनगुना लें आ प्रीत तू निभा जा||
 
रिश्ता बना सरस जो आ जा उसे निभाने|
मुखड़ा मुझे दिखा जा महफिल सजी कि आ जा||
 
 
दिलीप कुमार पाठक सरस

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