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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

दिलीप कुमार पाठक के कुछ भक्तिमय दोहे

रसना में है रस भरा, राम नाम से सींच||
मीठे फल सम रख लिया, सूरज को मुख बीच||
 
रोम रोम में राम हैं, राम राम हर रोम|
राममयी हनुमंत का, हृदय राम का व्योम||
 
राम राम रसना कहे, राम राम श्रीसंत|
राम राम श्री राम जी, राम राम हनुमंत||
 
राम दुलारे आप हो, अंजनि माँ के लाल|
भजे आपको जो सदा, करते उसे निहाल||
 
कर्णप्रिय हैं आपको, रामनाम के छंद|
हनुमत सुमिरन जो करै,कटते उसके फंद||
 
दौड़े आते राम जी, छोड़छाड़ सब काम|
क्या जड़ क्या चेतन कहें, जो भी लेता नाम||
 
रोग दोष भय दूर हो, मिटे शोक संताप|
बजरंगी के नाम से, दूर रहत हर पाप||
 
राम दुलारे आप हो, अंजनि माँ के लाल|
भजे आपको जो सदा, करते उसे निहाल||
 
बजरंगी का नाम ही, मेट देत सब पाप|
रघुवर हनुमत नाम से, मिटते तीनों ताप ||
 
हनुमत सागर भक्ति के, कहते हैं सब लोग|
रामनाम की वृष्टि में, होता हनुमत योग||
 
लंका सोने की जली, मची खलबली खूब|
आग पूँछ में यूँ लगी, गीष्मकाल ज्यों दूब||
 
हनुमत के सम आप भी, राम राम भज राम||
राम राम भज राम को, बनेंगे बिगड़े काम||
 
भजन करें श्रीराम का,प्यारे हनुमत वीर|
जो भजता हनुमान को, होता नहीं अधीर||
 
जग में कोई है नहीं, उन समान बलवान|
राम राम जपते सदा, राम भक्त हनुमान ||
 
राम सदा रमते जहाँ, नयना सुन्दर झील|
मारुतिनंदनवीर हैं, ज्ञानवान गुणशील||
 
संकटमोचन नाम है, रामनाम का जाप|
रामभक्त हनुमान जी, मेटें सारे पाप ||
 
दिलीप कुमार पाठक सरस

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