मकरन्द छंद◆*
विधान~
[नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु]
(111122, 111122, 11111111, 111122)
26 वर्ण,4 चरण, यति 6,6,8,6,वर्णों पर
[दो-दो चरण समतुकांत]
सरपट छा जा, दधि अब खा जा,
धड़म धड़म धम, मत कर आ जा|
मन स्वर वंशी, तुम यदुवंशी,
नटवर नटखट , दधि चख ताजा||
विरहन राधा, तन मन व्याधा,
दरपन निरखत,नयनन तृष्ना|
पटु बनवारी, नट गिरिधारी,
तन मन सब धन, गिरिवर कृष्ना||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
क्रीड़ा छंद~122 2
लला प्यारे|
हमारे रे||
सँवारे हूँ|
सहारे हूँ||
चले आना|
नहीं जाना||
रहा प्यासा|
बँधी आशा||
सुरीला~सा
रँगीला~सा
कि गा लेना|
सुना देना||
न आयेगा |
न जायेगा||
वही जीता|
पढी गीता||
दिलीप कुमार पाठक सरस
कृष्ण /वपु छंद~221 1
बेटी बढ़|
बेटी पढ़||
बेटी पल|
बेटी कल||
माता मन|
माता धन||
माता गुन|
माता धुन||
मेटे दुख|
देती सुख||
साँसों बस|
आ जा हँस||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक सरस
कृष्ण /वपु छंद~221 1
रोये हम|
आँखें नम||
रातों अब|
सोते कब||
यादें मन|
आतीं तन||
होली रँग|
खेले सँग||
मेघा सुन|
प्यासी धुन||
देखूँ दर|
आओ घर||
तेरे बिन|
काटे दिन||
लम्बा दुख|
दे जा सुख||
कृष्ण /वपु छंद~221 1
विषय~कोंपल~☘☘☘
हैं कोमल|
ये कोंपल||
हो चंचल|
वृन्तों दल||
हे जीवन|
सींचो मन||
झूमे तन|
वृन्दावन ||
स्नेहाजल|
दे दे चल|
तेरा बल|
मैं कोंपल||
दिलीप कुमार पाठक सरस
गिरिधारी छंद
112 111 122 112
मतभेद जगत में है छलना||
मम हाथ पकड़ माता चलना||
नित नैनन विधि सोहे समता|
पलना मन ललना माँ ममता||
सब रूप जगत को है निरखो|
सच जानहुँ सब धोखो मन को||
सब जानत वह माता मन की|
गति है सुर लय है जीवन की||
दिलीप कुमार पाठक सरस
◆रक्ता छंद◆
विधान~ [रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 )
7 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
पूज लो गणेश को |
सिद्धि के विशेष को||
शारदे कृपा करो|
दुःख रोग को हरो||
सोम नाथ साथ हैं|
पा सदा सनाथ हैं||
प्रेम प्यास आस की|
बात हो विकास की||
भक्ति भाव संग हो|
प्रेम धर्म रंग हो||
प्रेम गीत गाइए|
भक्ति भाव पाइए||
इष्ट सोम देव हैं |
सर्वश्रेष्ठमेव है||
शक्ति पुंज सोम जी|
प्रेम भक्ति ओम जी||
गाइए मनाइए|
विष्णु रूप ध्याइए||
ब्रह्म को रचाइए|
तो महेश पाइए||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆दुर्मिल छंद◆
विधान~
प्रति चरण 32 मात्राएँ, 10,8,14 मात्राओं
पर यति,चरणान्त11222,चार चरण,दो-दो
चरण समतुकांत|
आदि शक्ति माता, सिंह सवारी,
सच कहता जग से न्यारी|
महिमा है अद्भुत, कहते सारे,
माँ मेरी सबसे प्यारी ||
करती दुष्ट दलन, दुख हर लेती,
ममता की मम प्याली है|
ओ मातु भवानी, तू जगदंबा,
तू दुर्गा अरु काली है||
दिलीप कुमार पाठक सरस
मुरली छन्द-
विधान- सगण सगण जगण गुरू=10 वर्ण
सगण भगण रगण लघु गुरु =11वर्ण
उर मेहनती जला दिया|
मन भाया वह काम ही किया||
कब कौन कहाँ मिले सदा|
मन फूलों सम क्या खिले सदा||
सुन प्रश्न कहा सुनो सुनो|
श्रम होता यश आ अभी गुनो||
चल साथ दया भला करो|
थक हारो मत दुःख आ हरो||
दिलीप कुमार पाठक सरस
◆रक्ता छंद◆
विधान~ [रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 )
7 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
पूज लो गणेश को |
सिद्धि के विशेष को||
शारदे कृपा करो|
दुःख रोग को हरो||
सोम नाथ साथ हैं|
पा सदा सनाथ हैं||
प्रेम प्यास आस की|
बात हो विकास की||
भक्ति भाव संग हो|
प्रेम धर्म रंग हो||
प्रेम गीत गाइए|
भक्ति भाव पाइए||
इष्ट सोम देव हैं |
सर्वश्रेष्ठमेव है||
शक्ति पुंज सोम जी|
प्रेम भक्ति ओम जी||
गाइए मनाइए|
विष्णु रूप ध्याइए||
ब्रह्म को रचाइए|
तो महेश पाइए||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆दुर्मिल छंद◆
विधान~
प्रति चरण 32 मात्राएँ, 10,8,14 मात्राओं
पर यति,चरणान्त11222,चार चरण,दो-दो
चरण समतुकांत|
आदि शक्ति माता, सिंह सवारी,
सच कहता जग से न्यारी|
महिमा है अद्भुत, कहते सारे,
माँ मेरी सबसे प्यारी ||
करती दुष्ट दलन, दुख हर लेती,
ममता की मम प्याली है|
ओ मातु भवानी, तू जगदंबा,
तू दुर्गा अरु काली है||
मुरली छन्द-
विधान- सगण सगण जगण गुरू=10 वर्ण
सगण भगण रगण लघु गुरु =11वर्ण
उर मेहनती जला दिया|
मन भाया वह काम ही किया||
कब कौन कहाँ मिले सदा|
मन फूलों सम क्या खिले सदा||
सुन प्रश्न कहा सुनो सुनो|
श्रम होता यश आ अभी गुनो||
चल साथ दया भला करो|
थक हारो मत दुःख आ हरो||
दिलीप कुमार पाठक सरस
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