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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- भूला न दिल अभी तक , उस प्यार तिश्नगी को - बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"

बहर-221, 2122 , 221, 2122

भूला न दिल अभी तक , उस प्यार तिश्नगी को ।
सुनना सुनाऐगी बस , वो मेरी ज्यादती को ।।

ये खेल प्यार का है , इसके नियम अनोखे ।
उसने हराया ऐसे , भूले न दिल्लगी को ।।

नफरत परोसना हैं , उनका तो काम हरदम ।
देखो जला न देना , नफरत से आशिकी को ।।

देखा है उसका जलवा , आगोश में ठहरकर ।
कातिल अदा लगाती , है आग चाँदनी को ।।

अफसोस रहा हरदम , इतना सा बस कहे क्या ।
हम थे खुली किताबे , वो पढ़ न पाए हमीं को ।।

जिसको था हमने समझा , समझे न वो तो अब तक ।
जिसने हमें था समझा , समझे न हम उसी को ।।
 
हमको बताते शायद , रखते न बात दिल में ।
दे देते जान *साथी* , रखते न हम कमी को ।।

🌻🌻🌻🌻🌻588🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा

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