बहर- 22-22-22-22-22-2
उनके ऊपर दुनियाँ हमने वारी है ।
वो बस समझे ये तो दुनिया दारी है ।।
हाल बुरा तस्वीरों का हमने देखा ।
दीवारों पर लटकी वो बेचारी है ।।
जान फँसी है आफत में अपनी यारो ।
उनको दिखती कब अपनी खुद्दारी है ।।
दूर खड़े होकर हम पर हसते हो क्यो ।
बिन देखे रहना भी तो बीमारी है ।।
यौवन की बारुद लिऐ क्यो फिरते हो ।
दूर रहो हम भी रखते चिंगारी है ।।
एक शगूफा मानो है बिलकुल सच्चा ।
किस्मत के आगे मेहनत कब हारी है ।।
अहसास करा दो मुझको मेरे होने का ।
सुन रख्खी तेरी *साथी* फ़नकारी है ।।
🌻🌻🌻🌻🌻592🌻🌻
कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
उनके ऊपर दुनियाँ हमने वारी है ।
वो बस समझे ये तो दुनिया दारी है ।।
हाल बुरा तस्वीरों का हमने देखा ।
दीवारों पर लटकी वो बेचारी है ।।
जान फँसी है आफत में अपनी यारो ।
उनको दिखती कब अपनी खुद्दारी है ।।
दूर खड़े होकर हम पर हसते हो क्यो ।
बिन देखे रहना भी तो बीमारी है ।।
यौवन की बारुद लिऐ क्यो फिरते हो ।
दूर रहो हम भी रखते चिंगारी है ।।
एक शगूफा मानो है बिलकुल सच्चा ।
किस्मत के आगे मेहनत कब हारी है ।।
अहसास करा दो मुझको मेरे होने का ।
सुन रख्खी तेरी *साथी* फ़नकारी है ।।
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कवि बृजमोहन श्रीवास्तव "साथी"डबरा
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