उठती है गूँज दिल की हर दीवार से दीदी,
मैं आज हूँ जो कुछ भी वो, तेरे प्यार से दीदी|
हैं युगपालक बहुतेरे, कोई तेरे सम नहीं,
बस जना नहीं तूने पर, तू माँ से कम नहीं,
तेरी गोद में क्रीड़ाओं के त्यौहार से दीदी,
तेरे प्यार से दीदी…..
मैं आज हूँ जो कुछ भी वो, तेरे प्यार से दीदी|
था जाड्यता का पर्दा, सिर से हटा दिया,
देकर सद्गुण पर्याप्त, हुनर जीने का सीखा दिया,
भर दिया प्रचुर जीवन को संस्कार से दीदी,
बड़े प्यार से दीदी….
मैं आज हूँ जो कुछ भी वो, तेरे प्यार से दीदी|
तेरा भाव स्नेहिल बना गया मेरे दिल को कोहिनूर,
तूने किया है, दर्प के दर्पण को चकनाचूर,
तेरे स्पर्श की स्निग्ध-पुष्प-बौछार से दीदी,
तेरे प्यार से दीदी…..
मैं आज हूँ जो कुछ भी वो, तेरे प्यार से दीदी|
सौभाग्य मेरा है दीदी, मैं हूँ तेरी परछाई,
हर जनम बनूँ तेरा भाई, रब होगा उत्तरदायी,
है विनती यही, मेरी जग के पालनहार से दीदी,
बड़े प्यार से दीदी…..
मैं आज हूँ जो कुछ भी वो तेरे प्यार से दीदी|
_________________________________
~ पं० सुमित शर्मा “पीयूष”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे
भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400