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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- ऐसे होता है क्या निभाना कोई - डा. नसीमा निशा

ऐसे होता है क्या निभाना कोई 
रोज करते हो तुम बहाना कोई 

बात करते हो हँस के गैरो से
तुमसे सीखे यों दिल दुखाना कोई 

बेवफाई तो तेरी फितरत है 
इक वफा का सबक पढाना कोई 

अपने दिल पे तुम हाथ रखके कहो
मुझ सा होगा तेरा दीवाना कोई 

मुझसे बेहतर जो जानता हो तुझे 
नाम उसका मुझे बताना कोई 

साजिशें जब छतों पे पलती हैं
 छोड़ जाता है आबोदाना कोई 

खुल के कलियाँ जब मुस्कुराएंगी 
ऐसा होगा भी क्या जमाना कोई 

Dr.नसीमा निशा

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