*◆ कनक मंजरी छंद ◆*
शिल्प~
[4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
चार चरण समतुकांत]
या
{1111+211+211+211
211+211+211+2}
नयनन आप बसे मम आकर,
मोहन आकर पीर हरौ|
सजकर बैठ गये किन देशन,
होत अँधेर उजास भरौ||
नटखट चंचल है मन मोहन,
पास रहो मत दूर करौ|
चरनन आप बसा अघ लो यह,
हाथ कृपा को मम शीश धरौ||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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