हिंदी साहित्य वैभव

EMAIL.- Vikasbhardwaj3400.1234@blogger.com

Breaking

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

उस गली से रोज़ गुज़रा तब कहीं मुझपर खुला - चराग शर्मा

उस गली से रोज़ गुज़रा तब कहीं मुझपर खुला ।
क्यों वो रखती है दरीचे को ज़ियादातर खुला ।

जंग-ए-आज़ादी में काफ़ी लोग थे इस शहर के,
और फिर इस शहर में भी एक चिड़ियाघर खुला ।

तुमसे पहले भी मकान-ए-दिल में रहता था कोई
और तुम्हारे बाद भी रक्खेंगे दिल का दर खुला

एक फ्लाइट रद हुई है तेज़ बारिश के सबब
इक परिंदा उड़ रहा है पिंजरे के अन्दर खुला

चोर उचक्कों का हवाला बस बहाना है चराग़
बंद घर में भी नहीं रखता कोई लौकर खुला

- चराग़

us gali se roz guzra tab kahiN mujh pr khula
kyuN vo rakhti hai dareeche ko ziyadatar khula

jung-e-aazaadi me kaafi log the is sheher ke
or phir is sheher me bhi ek chidiya ghar khula

tumse pehle bhi makaan-e-dil me rehta tha koi,
or tumhare baad bhi rakkhenge dil ka dar khula .

Ek flight rad hui hai tez baarish ke sabab
ik parinda udd rha hai pinjare ke andar khula

chor uchakkoN ka hawala bas bahana hai charagh,
band ghar me bhi nhi rakhta koi locker khula .

- charagh

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

हिंदी साहित्य वैभव पर आने के लिए धन्यवाद । अगर आपको यह post पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर कीजिये और comments करके बताये की आपको यह कैसा लगा और हमारे आने वाले आर्टिक्ल को पाने के लिए फ्री मे subscribe करे
अगर आपके पास हमारे ब्लॉग या ब्लॉग पोस्ट से संबंधित कोई भी समस्या है तो कृपया अवगत करायें ।
अपनी कविता, गज़लें, कहानी, जीवनी, अपनी छवि या नाम के साथ हमारे मेल या वाटसअप नं. पर भेजें, हम आपकी पढ़ने की सामग्री के लिए प्रकाशित करेंगे

भेजें: - Aksbadauni@gmail.com
वाटसअप न. - 9627193400

विशिष्ट पोस्ट

सूचना :- रचनायें आमंत्रित हैं

प्रिय साहित्यकार मित्रों , आप अपनी रचनाएँ हमारे व्हाट्सएप नंबर 9627193400 पर न भेजकर ईमेल- Aksbadauni@gmail.com पर  भेजें.