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गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

औरों की प्यास और है और उसकी प्यास और ....चराग़ शर्मा

औरों की प्यास और है और उसकी प्यास और ।
कहता है हर गिलास पे "बस इक गिलास और"।

पहले ही कम हसीन कहाँ था तुम्हारा ग़म,
पहना दिया है उसको ग़ज़ल का लिबास और ।

टकरा रही है सांस मेरी उसकी सांस से ,
दिल फिर भी दे रहा है सदा "और पास...और" ।

अल्लाह! उसका लहजा-ए-शीरीं कि क्या कहूँ!
वल्लाह! उसपे उर्दू ज़ुबां की मिठास और ।

बाँधा है अब नक़ाब तो फिर कसके बाँध ले ,
इक घूँट पीके ये न हो बढ़ जाए प्यास और ।

ग़ालिब हयात होते तो करते ये ऐतराफ़,
दौर-ए-चराग़ में है ग़ज़ल का क्लास और।

-चराग़

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