औरों की प्यास और है और उसकी प्यास और ।
कहता है हर गिलास पे "बस इक गिलास और"।
पहले ही कम हसीन कहाँ था तुम्हारा ग़म,
पहना दिया है उसको ग़ज़ल का लिबास और ।
टकरा रही है सांस मेरी उसकी सांस से ,
दिल फिर भी दे रहा है सदा "और पास...और" ।
अल्लाह! उसका लहजा-ए-शीरीं कि क्या कहूँ!
वल्लाह! उसपे उर्दू ज़ुबां की मिठास और ।
बाँधा है अब नक़ाब तो फिर कसके बाँध ले ,
इक घूँट पीके ये न हो बढ़ जाए प्यास और ।
ग़ालिब हयात होते तो करते ये ऐतराफ़,
दौर-ए-चराग़ में है ग़ज़ल का क्लास और।
-चराग़
कहता है हर गिलास पे "बस इक गिलास और"।
पहले ही कम हसीन कहाँ था तुम्हारा ग़म,
पहना दिया है उसको ग़ज़ल का लिबास और ।
टकरा रही है सांस मेरी उसकी सांस से ,
दिल फिर भी दे रहा है सदा "और पास...और" ।
अल्लाह! उसका लहजा-ए-शीरीं कि क्या कहूँ!
वल्लाह! उसपे उर्दू ज़ुबां की मिठास और ।
बाँधा है अब नक़ाब तो फिर कसके बाँध ले ,
इक घूँट पीके ये न हो बढ़ जाए प्यास और ।
ग़ालिब हयात होते तो करते ये ऐतराफ़,
दौर-ए-चराग़ में है ग़ज़ल का क्लास और।
-चराग़
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