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रविवार, 5 अप्रैल 2020

आदित्य तोमर की कुछ मुक्तकें

मुक्तक

खुशियाँ तो ज़िन्दगी में न जाने कहाँ रहीं.
बे-घर ही मेरी हसरतों की तितलियाँ रहीं.
रहने को तुम ही थे जो यहाँ कुछ बरस रहे,
आँखों में बाक़ी उम्र महज़ सुर्ख़ियाँ रहीं.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

जीवन का वह दौर सुनहरा फिर देखें.
नदियों के रस्ते से सहरा फिर देखें.
आँखों की ख़्वाहिश है बुझने से पहले,
एक बार वह दिलकश चेहरा फिर देखें.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

बेख़याली में भी इतना होश का पहरा रहा।
मुन्तज़िर आँसू पलक पर देर तक ठहरा रहा.
इक विवादित भूमि बनकर रह गया मेरा ये दिल,
नाम तो उसके हुआ कब्ज़ा मगर तेरा रहा।
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

वक़्त से नज़रें चुराने का न सर इल्ज़ाम लेना.
दिनकरो ! थकने न रुकने का अभी से नाम लेना.
सीढ़ियों पर लड़खड़ाकर गिर रही है फिर सियासत,
फ़र्ज़ यह साहित्य का है, दौड़कर तुम थाम लेना.
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

ढेर दौलत के भले हम न कमाएँ भगवन.
आपकी भक्ति के झरने में नहाएँ भगवन.
प्रार्थना है यही जीवन में हमारे कारण,
आँख में आँसू किसी के नहीं आएँ भगवन.
-
आदित्य तोमर,
वज़ीरगंज, बदायूँ.

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