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बुधवार, 8 अप्रैल 2020

दिलीप कुमार पाठक जी के कुछ छंद लिस्ट 1

विधाता छंद~
1222 1222 1222 1222
गुरूजी सोम प्यारे हैं हमारे हैं तुम्हारे हैं|
अनूठा गान गाते हैं लिखे जो छंद न्यारे हैं||
लुभाया प्रेम शब्दों से पिरोया छंद माला-सा|
सँवारा है निखारा है अँधेरे में उजाला-सा||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*इन्दवज्रा -छंद*
शिल्प~समवर्ण, चार चरण,  
प्रत्येक चरण में दो तगण एक जगण 
और अन्त में दो गुरु /११ वर्ण
( 221  221  121  22 )
आके मुझे नेह दुलार दे माँ|
हूँ आपका ही सुत शारदे माँ||
शब्दों भरे भाव लिए खड़ा हूँ |
माता उठा लो चरणों पड़ा हूँ||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*इन्दवज्रा छंद*
विधान ~ तगण,तगण,जगण,गुरु गुरु]
             (221 ,221, 121, 22)
११वर्ण,४चरण,२-२ समतुकांत]
राधा~
नैनों सजाये रसना रटाये|
राधा बुलाये रटना लगाये||
ओ साँवरे मोहन धाय आओ|
आँसू बहें पोछ गले लगाओ||
कृष्ण ~
वंशी सजायी अधरों लगायी|
आयी न तू क्यों धुन वो बजायी||
बैठा रहा मैं यमुना किनारे|
राधा सु राधा हम टेर हारे||
राधा ~
काँटे चुभे पैरन वेदना पी|
दौड़ी सुनी जो धुन मोहना जी||
मेरे कन्हैया सुध भूल भागी|
 हाँ चेतना मैं पथ माहिं त्यागी||
कृष्ण ~
रोता रहा हूँ छलकात नैना|
ले नाम राधा पुलकात बैना||
मैं हूँ तुम्हारा तुम हो हमारी|
हो मोहिनी-सी मम प्राण प्यारी||
राधा~
हारी थकी थी सब दर्द खींचा|
आ मोहना ने जब अंक भींचा||
सींचा सदा नेह दुलार बोला|
छायी खुशी नैनन प्यार डोला|
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*भक्ति छंद*
221 122 2
आजा सजनी आजा|
होती रजनी आजा||
कान्हा मुरली प्यारी|
राधा लगती न्यारी||
ओ मोहन की राधा|
मेरी हर लो व्याधा||
वंशी धुन है प्यारी|
सारी वसुधा हारी||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*◆भक्ति छंद◆*
विधान~[तगण यगण गुरु ]
( 221  122  2 ) 7 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
प्यारी हर क्यारी है|
फूली फुलवारी है ||
मेरे नयनों सोहे|
मेरे मन को मोहे||
पंखों उड़के आती|
आती तितली भाती||
छूना मन को भाता |
मैं चंचल हो जाता||
फूलों मडराता है|
भौंरा नित गाता है||
आ प्रीत निभाता है|
मीठी धुन गाता है||
गा लें मृदु रागों में|
आ जा अब बागों में||
जो हो सतरंगी हो|
वो जीवन संगी हो||
है एक दिना जाना |
गाना नित मुस्काना||
पंछी उड़ जायेगा |
वो भी दिन आयेगा||

©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

राधेश्यामी छंद
जय जय सोम छंद की शाला,
पल पल निर्मल छंद रचैया|
नित ही खेलैं छंद खेल कौ,
हैं छंद रचैया भगत गवैया||
राजेन्द्र भुवन का तेज सरस,
हैं सरल सोम से ओम खड़े|
नैना साहिल विशेष शास्त्री,
अनुभूति साधना दिव्य बड़े||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"


*◆ कनक मंजरी छंद ◆*
शिल्प~ 4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
[चार चरण समतुकांत]
                     या
{1111+211+211+211
                      211+211+211+2}
कर नित सुन्दर छंदन वंदन,
भावत आवत जावत है|
मन भर देखत टेरत सोचत,
जागत सो अब पावत है||
सजकर लागत नायक गायक,
गूँजत आवत भावत है|
जब तब पूछत जूझत सूझत ,
छंदन वंदन गावत है||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*◆ कनक मंजरी छंद ◆*
शिल्प~
[4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
 चार चरण समतुकांत]
                     या
 {1111+211+211+211
                      211+211+211+2}
यह मति मूढ़ रही प्रभुजी अति,
सीख रहे कर जोड़ यहाँ|
सब धन आप रहे प्रभुजी मम,
आप जहाँ हम साथ वहाँ||
शिशु विनती इतनी सुन लो अब,
छोड़ हमें अब जात कहाँ||
सिर धुनता गुनता किसको नित|
शीश झुका करतार जहाँ||
नयनन आप बसे मम आकर,
मोहन आकर पीर हरौ|
सजकर बैठ गये किन देशन,
होत अँधेर उजास भरौ||
नटखट चंचल है मन मोहन,
पास रहो मत दूर करौ|
चरनन आप बसा अघ लो यह,
हस्तकृपा मम शीश धरौ||
जय जय भोर करे नित मोहन,
नाथ सनाथ सदा करना|
तन मन आप बसे मुरलीधर,
लो निज आप बसा चरना|
पथ नित हेरत टेरत-टेरत,
हार गया दुख आ हरना|
नटवर नागर तारण कारण,
आप बिना दुख है भरना||
अँखियन सूजन रोवत-रोवत,
हे करुणाकर आस लगी|
दरसन नैनन की हिय चाहत,
हे नटनागर प्यास लगी|
लख मनमोहन मोहक रूपक,
चन्द्रकलानि उजास लगी|
धड़कन साँसन नैनन प्रानन
भाखन सूँ अरदास लगी||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*◆ कनक मंजरी छंद ◆*
शिल्प~
[4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
 चार चरण समतुकांत]
                     या
 {1111+211+211+211
                      211+211+211+2}
नयनन आप बसे मम आकर,
मोहन आकर पीर हरौ|
सजकर बैठ गये किन देशन,
होत अँधेर उजास भरौ||
नटखट चंचल है मन मोहन,
पास रहो मत दूर करौ|
चरनन आप बसा अघ लो यह,
हाथ कृपा को मम शीश धरौ||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस

*◆ कनक मंजरी छंद ◆*
शिल्प~
[4 लघु+ 6भगण (211)+1गुरु] = 23 वर्ण
 चार चरण समतुकांत]
                     या
 {1111+211+211+211
                      211+211+211+2}
यह मति मूढ़ रही गुरुजी अति,
सीख रहे कर जोड़ यहाँ|
सब धन आप रहे प्रभुजी मम,
आप जहाँ हम साथ वहाँ||
शिशु विनती इतनी सुन लो अब,
छोड़ हमें अब जात कहाँ||
सिर धुनता गुनता किसको नित|
शीश झुका करतार जहाँ||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

विद्धुल्लेखा/शेषराज छंद
शिल्प:- [मगण मगण(222 222),
दो-दो चरण तुकांत,6वर्ण]
मेरे प्यारे दादा |
पानी पीते सादा||
छंदों को मैं गाता|
गाने में क्या जाता||
छोटा मेरा बेटा|
बेटा सोता लेटा|
बोलेगा ओ पापा|
खोओ नाहीं आपा||
भारी गर्मी आयी|
ऊबी देखो माई|
पेंड़ों की है छाया|
पानी मेघा लाया||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*◆मकरन्द छंद◆*
विधान~
[नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु]
(111122,  111122,  11111111,  111122)
26 वर्ण,4 चरण, यति 6,6,8,6,वर्णों पर
[दो-दो चरण समतुकांत]
सरपट छा जा, दधि अब खा जा,
धड़म धड़म धम, मत कर आ जा|
मन स्वर वंशी, तुम यदुवंशी,
नटवर नटखट , दधि चख ताजा||
विरहन राधा, तन मन व्याधा,
दरपन निरखत,नयनन तृष्ना|
पटु बनवारी, नट गिरिधारी,
तन मन सब धन, गिरिवर  कृष्ना||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

*अहीर छंद*
*विधान - प्रति चरण 11 *मात्राएँ ,चरणान्त जगण(121)से ।(दो-दो चरण समतुकान्त)
नैना रहे निहार|
देना सोम दुलार||
काहे हमें सतात|
आते क्यों नहिं तात||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*◆मंजुभाषिणी छंद◆*
विधान~[ सगण जगण सगण जगण+गुरु]
(112  121   112  121 2)
13 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
मन में बसा सरस धाम को सदा|
रसना पुकार प्रभु नाम को सदा||
भज ले सदैव जप ले हरीहरौ|
प्रभु आप नेह कर शीश पै धरौ||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*◆मंजुभाषिणी छंद◆*
विधान~[ सगण जगण सगण जगण+गुरु]
(112  121   112  121 2)
13 वर्ण, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
उर में खटास नहिं कौन काम हैं|
मत तोड़ मीत लघु आज आम हैं||
रख तोष कोष उर में मिठास है|
फुलगी सुवास बस आस पास है||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"

गजपति छंद
1112 1112
कमल फूल खिलता|
सरस कूल मिलता||
चरण धूल प्रभु की|
पकड़ मूल विभु की||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
गजपति छंद ~
1112 1112
अवध पालक बने|
भरत चालक बने|
लखन बालकपना|
चलत शत्रुघनघना||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

मधुभार छंद▪*
[तगण,भगण,नगण,जगण]
{221,21         1,111,121}
12 वर्ण, 4 चरण (5,7 पर यति,)
दो-दो चरण समतुकांत
अंगार ,फाँकत ,चलत ,बयार|
आ पास, छेंड़न ,हृदय, सितार||
गा गीत, चाहत ,सजत ,निखार|
रूपाभ ,नैनन, करत ,शिकार||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
विष्णु पद ~छंद
जीवन बड़ा कठिन है प्रियवर,
           दौड़ा भागी है|
कुछ करने की इस जीवन में,
           इच्छा जागी है||
किन्तु हाय कैसा परिवर्तन,
         मारामारी है |
छलबल दम्भ लोभ से,
          मति मम हारी है||😀🙏🏻😀
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
विष्णु पद😀🙏🏻😀
कौसल ओम सोम सब भाई,
नैना देख रहे|
कौन बनेगा सच्चा झूठा,
लिख हम लेख रहे|
आस सरल साहिल सम,
कम मिल पाते हैं |
सौम्य विशेष बनाने वाले,
छंदों को गाते हैं ||
सरस🖊
मोटनक छंद
221 121 121 12
माना सब आप किया करते|
माँगे बिन आप दिया करते||
काहे मन दीन करूँ अपना|
प्यारा मम जीवन का सपना||
देखूँ नित नैनन फूल खिले|
प्यासा बन तो जल कूप मिले||
मीठा रस पास चखो अब तो|
लाया सब साथ रखो कब को||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
मोटनक~छंद
221 121 121 12
मीरा भजती मनमोहन को|
राधा रटती मन के धन को||
पाया जिसने उसके मन को|
तारा उसने उस जीवन को||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
तू सोवत में अरु जागत में|
गा आगत के नित स्वागत में||
बातें दुख दें उनसे बचना|
गाएँ सब नूतन~सी रचना||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*◆ सोमराजी / शंखनादी छंद ◆*
शिल्प~[यगण यगण(122 122)
           [दो-दो चरण तुकांत, 6 वर्ण]
हमें भी जिला दो|
दिखा दो पिला दो|
यही सोम सारा|
लगा विश्व न्यारा||
पिया ओम ने है|
दिया व्योम ने है||
गुरू सोम ऐसे|
मिली साँस जैसे||
जय जय
✒सोमराजी/शंखनादी छंद✒
शिल्प - [यगण यगण (१२२  १२२)]
[दो-दो चरण तुकांत, ६ वर्ण]
😀🙏🏻😀
तुम्हीं ने सँवारा|
तुम्हीं ने निखारा|
दिखा आ विभा दो|
मुझे भी निभा लो||
सभी आप तारें|
हमें भी उबारें||
कृपा आज भी है|
दया आपकी है||
तुम्हें है सँजोया|
फले बीज बोया||
बनूँ मैं विनोदी|
सदा बैठ गोदी||
सदा ही हँसाके|
गया पास आके||
हँसी मैं सजाऊँ|
सभी को हँसाऊँ||
सखा आप प्यारे|
बँधे तार सारे||
सखा प्रीत पाऊँ|
चला आ रिझाऊँ||
भरा भाव तेरा|
कटे फंद फेरा||
लगा छंद टेरा|
हुआ है सवेरा||
सदा छंद गाता|
तुम्हीं को मनाता||
सखा नाथ भ्राता|
पिता हो व माता||
बँधे बंध सारे|
हुए हैं तुम्हारे ||
निहारूँ पुकारूँ|
सँवारूँ निखारूँ||
सहारा हमारा|
सुधा प्रेम धारा||
चलो जी सुनायें|
नये छंद गायें||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
गजपति~
1112 1112
सहज होकर कहें|
चुप नहीं अब रहें||
कड़क हो कड़कते|
हृदय में धड़कते||
जलद हैं बरसते|
सरस हैं तरसते||
धड़क जा हृदय में|
हृदय के निलय में||

दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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