*◆ मंदाक्रान्ता छंद ◆*
विधान~
[{मगण भगण नगण तगण तगण+22}
( 222 2, 11 111 2, 21 221 22)
17 वर्ण, यति 4, 6, 7 वर्णों पर, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
प्यारी प्यारी ,नित प्रति सजे, छंदशाला हमारी|
गंधवाही, पवन चलती,प्रीत लागै सुखारी||
मंदाक्राता, सरस बहता, भाव संसारसारा|
जीते हारे, बरबस सभी, प्रेम का है सहारा||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*उल्लाला छंद*
दीन हीन बनकर कभी ,होत न कोई काम जी|
काम बिना होता नहीं, कभी जगत में नाम जी||
प्रीत रीत की जीत में, मीत गीत संगीत है|
होत सरस क्यों बोल तू, आज यहाँ भयभीत है ||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*उल्लाला छंद*
दीन हीन बनकर कभी ,होत न कोई काम जी|
काम बिना होता नहीं, कभी जगत में नाम जी||
प्रीत रीत की जीत में, मीत मान का गीत है|
गीत गान के मान में,मीत मिलन की प्रीत है||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
तिलका छंद
112 112
प्रभु नाम रटा|
हर पाप घटा||
मन पीर हरी|
नहिं देर करी||
गुणगान लिखा|
हरि ध्यान लिखा|
गुरु ज्ञान लिखा|
दिनमान लिखा||
रसने !सज ले |
भज ले भज ले||
गति कौन कहे|
प्रभु मौन रहे||
जय जोत यहीं|
भय होत नहीं||
कब कौन सुखी|
सब मौन दुखी||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
तिलका छंद
112 112
सुन जून कहे|
हम गर्म रहे|
तुम कर्म करो|
मम ताप हरो||
तरु कोंपल को |
जलते जल को||
मन दाह दहे|
मुख आह कहे||
तरु पीत पड़े|
जल रीत पड़े||
घन देखत हैं|
मन देखत हैं||
सुर मंद हँसें|
सब छंद हँसें||
मन फंद कटें|
जब राम रटें||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
तिलका छंद
112 112
सुन ग्रीष्म कहे|
हम गर्म रहे|
तुम कर्म करो|
मम ताप हरो||
तरु कोंपल को |
जलते जल को||
मन दाह दहे|
मुख आह कहे||
तरु पीत पड़े|
जल रीत पड़े||
घन देखत हैं|
मन देखत हैं||
सुर मंद हँसें|
सब छंद हँसें||
मन फंद कटें|
जब राम रटें||
दिलीप कुमार पाठक "सरस"
*◆रसाल छंद◆*
विधान~ [भगण नगण जगण भगण जगण जगण+लघु]
(211 111 121 211 121 121 1)
19 वर्ण, 9, 10 वर्णों पर यति,
(4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।)
साँझ सजत मन पुष्प ,शोभित सुगंधित सौरभ|
रीझत नयनन बैन,शब्द अनुबंधित ज्यों नभ||
मोहक मधुकर गूँज, छंद मुरलीधर गावत|
नाचत नटवर संग, ताल सुर साथ सुहावत||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🐍नाग छंद🐍
हे मुरलीधारी ,हे बनवारी ,रखना ध्यान|
मम प्राणन प्यारे, कृष्ण हमारे, कृपा निधान ||
हम तुम्हें बुलाते,तुम्हें मनाते,आओ नाथ|
जीवन के तट पर,रस के घट पर खेलौ साथ||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
◆नरहरि छंद◆
विधान-
प्रतिचरण19 मात्राएँ,चरणान्त1112,
यति-14,5 मात्रिक
दो-दो चरण समतुकांत, चार चरण।
ओ कान्हा वंशी वाले, धुन सुना|
मुझको जो भाये आके,गुनगुना||
तीनों लोकों के स्वामी, मन बसो|
फूल कली के अधरन पर,नित हँसो||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
सार छंद~16,12,चरणान्त~दो गुरु
मैं करूँ नमन स्वीकार करो,मेरे प्रियवर आओ|
मन मेरा नित चंचल होता, छंद सरस गा जाओ||
तुम बिन सब है सूना सूना, फूलों सम मुस्काओ|
छंदों में भर प्रेम सोम को, तुम आकर छलकाओ||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
🔶भालचंद्र छन्द🔶
विधान~~~
जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु लघु
१२१,२१२,१२१,२१२,१२१,२१
💐🙏🏻💐🙏🏻💐🙏🏻💐
सजा वितान सा विधान भालचन्द्र छंद गान|
कृपा निधान सोम ओम दिव्यदृष्टि के समान ||
बने प्रमाण भावसाम्य शब्द ज्ञान पाग पाग|
निखार को निहार नैन हो सदा नवीन राग||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
¶ *भालचंद्र छंद* ¶
विधान-
[जगण रगण जगण रगण जगण+गुरु लघु]
121 212 121 212 121 21
17 वर्ण चार चरण समतुकांत
*************************
सखा प्रताप आपका सदैव सूर्य के समान|
मिला सुजान आसमान के समान भासमान||
सजी हुई सुचन्द्रिका निखारती निहार नैन |
निहारती सँवारती विहारती पुकार बैन||
🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊🖊
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
भुजंगी छंद
^^^^^^^^^^
विधान ~
[ यगण यगण यगण + लघु गुरु ]
( 122 122 122 1 2 ) ,
11 वर्ण , 4 चरण , दो - दो चरण समतुकांत ।
🌹🌹🌹माँ🌹🌹🌹
हमारी तुम्हारी कहानी बनी|
उसी ने सदा नेहश्रद्धा जनी||
वही है हँसी सर्व पूजा वही|
वही है हवा सोमधारा मही||
वही शक्ति है भक्ति बोती वही|
वही युक्ति है दिव्य जोती वही||
पुरानी कहानी परी है वही|
वही कृष्ण माता खिलाती दही||
यशोदा कहे लाल भूखा अभी|
कन्हैया सखा संग भूखे सभी||
मथूँगी दही लाल नैनी चखो|
थके आ रहे घूम वंशी रखो||
चलो आ नहा लो बड़ी धूप है|
सजाया कन्हैया लला भूप है||
नहीं मात जैसा मिला है कभी|
सदा शीश पैरों झुकाते सभी||
वही सृष्टि दात्री विधात्री वही|
सभी सार झूठा वही है सही||
वही एक सौम्या विचारी बनी|
लला दर्श पाने को हारी धनी||
©दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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