काफ़िया- ओने
रदीफ़- लगा
बह्र- 2122 2122 2122 212
ख्वाब का वो कारवां जाने किधर खोने लगा
मैं जगी आँखों को फिर से अश्क से धोने लगा
याद में मुझको तड़पता देखकर ऐ जानेमन
चाँद तारों से लिपटकर फूटकर रोने लगा।
रफ़्ता रफ़्ता बढ़ रहा है मस्तियों का सिलसिला
मेरी यादों के महल में जब से वो सोने लगा
नफ़रतों से जल रहा है आज घर-घर आदमी
प्यार के मैं बीज यूँ भी हर तरफ़ बोने लगा
सादगी हुस्न-ओ-तबस्सुम दिलकशी थी इस कदर
देखकर उस शख़्स को बस इश्क सा होने लगा
सना 'मेहनाज़'
हरदोई
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