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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- ख्वाब का वो कारवां जाने किधर खोने लगा - सना परवीन


काफ़िया- ओने
रदीफ़-  लगा
बह्र-  2122  2122  2122  212

ख्वाब का वो कारवां जाने किधर खोने लगा
मैं जगी आँखों को फिर से अश्क से धोने लगा 

याद में मुझको तड़पता देखकर ऐ जानेमन
चाँद तारों से लिपटकर फूटकर रोने लगा।

रफ़्ता रफ़्ता बढ़ रहा है मस्तियों का सिलसिला
मेरी यादों के महल में जब से वो सोने लगा 

नफ़रतों से जल रहा है आज घर-घर आदमी 
प्यार के मैं बीज यूँ भी हर तरफ़ बोने लगा 

सादगी हुस्न-ओ-तबस्सुम दिलकशी थी इस कदर 
देखकर उस शख़्स को बस इश्क सा होने लगा 

सना  'मेहनाज़'
हरदोई

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