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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

ग़ज़ल :- चढ़ता रहा खुमार तुम्हारे शबाब का - सना परवीन

221 2121  1221 212

चढ़ता रहा खुमार तुम्हारे शबाब का,
मिलने लगा जवाब मुझे मेरे ख़्वाब  का।

तुमने जो फूल छुपके  दिया था क़िताब में
हर हर्फ़ ख़ुशबूदार  है अब तक क़िताब का 

बेचैन हो रही हूँ यही सोच सोच कर
कोई खबर न खत ही  मिला है जनाब का।

देकर दिलासा आप ये टालेगें कब तलक
पैग़ाम आ रहा है मिरे घर नवाब का ।।

वो पूछते हैं आज *सना* क्या दिया हमें
रखता है कौन प्यार में पर्चा हिसाब का ।।

सना परवीन 

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